________________
રૂક
जैन-शिलालेख-संग्रह [स्वस्ति । नाग-कुऑ जिसको गुणसेन-पण्डित देवने नकर याने व्यापारी संघके धर्मके रूपमे खुदवाया।]
[BC, IX, Coorg t] , n° 42]
१९२
सोमवार-कन्नड [विना काल-निर्देशका, लेकिन सभवत. लगभग १०६०ई०] [सोमवार (मल्लिपट्टण परगना) मे, बसवण्ण मन्दिरकी बाहरी दीवाल के पापाणपर]
धरेयोळगेचलन्देविगे। गुरुगळ् गुणसेन-पण्डितविक गणम् । वर- नन्दि-संघमन्वय मरुङ्ग... "नगदेन्दडेम्वण्णिपुडो॥ भद्रमस्तु । [एचलदेविके गुरु, द्रविळ गण, नन्दि-संघ और अरुङ्गल-अन्वयके, गुणसेन-पण्डित, जो इतने प्रसिद्ध हैं, उनका वर्णन इस ससारमें कैसे हो सकता है ? कल्याण हो।]
[EC, V, Arkalgud ti, no 98 ]
कडवन्ति-कन्नड़-भन्न । [विना काल-निर्देशका पर संभवत लगभग १०६० ई.]
[कडवन्तिमे, मेलु-कडवन्तिकी चट्टानपर] भद्रमस्तु जिनशासनाय श्रीमत्-दान "खचर-कन्दप सेनमार पृथुवी-राज्य गेय्युत्तमिरे देव-गणद पाषाणान्वयद महेन्द्र-वोळळं पडेद अङ्क देव-भटारर शिष्यमहीदेव-भटारर गुड्ड निरवद्यय्यं मेळसरय मेगे निरवद्य-जिनालयमं माडि खचर-कन्दर्प-सेनमारन दयगेये निरवद्यय्य मानिय पडेदु जकि-मानियेन्दु पेसरनिडे निरवद्य-जिनालयके कोट्ट