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मथुराका लेख
५. ना अरहतायतने स [ह]] मातरे भगिनिये धितरे पुत्रेण ६. सविन च परिजनेन अरहनपुजाये ।
अनुवाद - अर्हत् वर्धमानको नमस्कार हो | श्रमणोंकी उपासिका ( श्राविका ) गणिका नादा, गणिका दन्दाकी बेटी वासा, लेणशोभिकाने अर्हन्तोंकी पूजाके लिये व्यापारियोंके अर्हतमन्दिरसे अपनी माँ, अपनी बहिन, अपनी पुत्री, अपने लड़केके साथ और अपने सारे परिजनोंके साथा मिलकर एक बेटी, एक पूजागृह, एक कुण्ड और पापाणासन बनवाये । [I. A., XXXIII, p 152-153.]
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मथुरा - प्राकृत |
( कालनिर्देश नहीं दिया है, किन्तु जे. एफ. फ्लीटके अनुसार लगभग १४-१३ ई० पूर्वका होना चाहिये )
१. [न] मो अरहतो वर्धमानस्य गोतिपुत्रस पोठयशक
२. कालवाळस
३. [ भार्यायै ] कोशिकिये शिमित्राये' अयागपटो प्रि [ प्रति-ष्ठापितो ]
अनुवाद -वर्धमान अर्हन्तको नमस्कार हो । गोतिपुत्र ( गौतीपुत्र ) की स्त्री कौशिकक्लोद्भुत शिवमित्राने एक मयागपर स्थापित किया । गोतिपुत्र पोठय और शक लोगोंके लिये काला सर्प ( कालवाल ) था । [El, I, n XLIV, n° 33]
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मथुरा-- प्राकृत |
[विना कालनिर्देशका सम्भवतः १४-१३ ई० पूर्व ]
२. मा अरहतपूजा [ ये ]
२. गोतीपुत्रस ईद्रपाल ] ....
१ इसकी जगह 'शिवमित्राचे पढ़ना चाहिये (J. F Fleet ) ।