________________
बेळगामिका लेख
२२१ नामादि-समस्त-प्रशस्ति-सहित श्रीमन्महा-मण्डलेश्वरं चा-ण्ड-रायरसर बनवासि-पन्निर-च्छासिरमनाळुत्तमिरल राजधानि-चळिगावेय नेले. वीडिनोळ् शक-वर्ष ९७० नेय सर्वधारी-संवत्सरद ज्येष्ठ-शुद्धत्रयोदशी-आदित्यवारदन्दु जजाहुति-श्री-शान्तिनाथ-सम्बन्धियप्प बळगार-गणद मेघनन्दि-भट्टारकर-शिष्यरम्प केशवनन्दि-अष्टोपवासि-भळा(ट्टा)रर बसदिगे पूजा-निमित्तदिं धारा-पूर्वक जिडळिगे ७० र वळिय राजधानि-वळिगावेय पुल्लेय-वयलोळ् मेरुण्ड-गळेयोळ् कोट गळ्दे मत्तरप्दु अदर सीमे (सीमाओंकी चर्चा)
धर्मेण शौर्य-सत्येन त्यागेन च महीतले । गण्ड-भेरुण्ड-सादृश्यो न भूतो न भविष्यति ॥ ( हमेशाके मन्तिम श्लोक) वनवासे-देसदोळगण । जिन-निळय विष्णु-निळयमीश्वर-निळयम् । मुनि-गण-निळयमिव रा-1
यन वेसदिं नागवर्म-विभु माडिसिदम् ॥ [जिस समय, (हमेशाकी चालुक्य उपाधियो सहित), त्रैलोक्यमल्ल देवका विजयराज्य प्रवर्द्धमान था -वनवासि-पुरवरका ईश्वर, महालक्ष्मीसे जिसने वर प्राप्त किया था, 'गण्ड-भेरुण्ड' 'जगदेकदानी' इन और दूसरे पदो सहित, महामण्डलेश्वर चामुण्डराय रायरस वनवासी १२००० पर शासन कर रहा था,-बळ्ळिगावे राजधानीमें, (उक्त मितिको), जजाहुति शान्ति. नाथके साथ सम्बद्ध वळगार गणके मेघनन्दि-भहारकके शिष्य केशवनन्दि मष्टोपवासि-भट्टारकी वसदिमें पूजा करनेके लिये, जिवळिगे-सत्तरमें, राजधानी वल्लिगावेके मृगवनमें, 'भेरुण्ड' दण्ड (माप) अनुसार, ५ मत्त धान (चावल) क्षेत्रका दान किया। (भूमिकी सीमाएँ)।