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तिरुमलका लेख
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"कोकिळप्पाकै" मि० फ्लीटके अनुसार, पश्चिमी चालुक्य राजा जयसिह तृतीय की राजधानियोंमेसे एक था ।
'ईरम्' या 'ईर-मण्डलम्' से मतलब सीलोन ( लङ्का) से है । तेन्न वन्= 'दक्षिणका राजा' से प्रयोजन पाण्ड्य राजासे है । उसके विषयमें अभिलेख कहता है कि उसने पहिले 'सुन्दर' का मुकुट सीलोनके राजाको दे दिया था जिससे राजेन्द्र चोलने पुनः वह सुन्दरका मुकुट ले लिया । वर्तमान लेख में 'सुन्दरका मुकुट' से मतलब 'पाण्ड्य राजाका मुकुट' मालूम पडता है । यहाँ 'सुन्दर' कोई पाण्डय वंशका राजा मालूम पडता है । उसका नाम लेखके कर्त्ताने नहीं दिया और न सीलोनके राजाका नाम जिसे राजेन्द्र चोलने जीता था। आगे लेख यह भी बताता है कि राजेन्द्र चोलने' केरळ' अर्थात् मलबारके राजाको जीता था । उसने ' शक्कर - कोहम्' के राजा विक्रम वीरको भी हराया था । लेखका 'भदुरा-मण्डलम्' पाण्ड्य देश है, जिसकी राजधानी मदुरा थी । 'ओड्ड- विषय' उडीसा है । 'कोशा' दक्षिण कोसल है, जो जनरल कनिंघमके अनुसार, महानदी और इसकी सहायक नदियोकी ऊपरकी घाटी है । 'लाड' और 'उत्तिरलाडम्' से मतलब क्रमशः दक्षिणी और उत्तरी लाट (गुजरात) से है । पहला किसी 'रणशूर' से लिया गया था। आगे बताया जाता है कि राजेन्द्र चोलने 'बङ्गालदेश' अर्थात् बङ्गाल को किसी गोविन्दचन्द्र से जीतकर उसका विस्तार गङ्गातक किया था । शेष देश और राजाओोके नाम, ई हुल्ज (E, Hultzsch ) कहते है कि, वे पहचान नहीं सके ।
लेखमे तिरुमलै, अर्थात् 'पवित्र पहाड' का वर्णन है, और वह इसके ऊपरके मन्दिरको जिसे 'कुन्दवै-जिनालय' कहा गया है, दिये गये दानका उल्लेख करता है । यह 'कुन्दवै' कौन थी, इसके विषयमे ऐतिहासिकोंके दो मत है ।
इस शिलालेखके अनुसार, तिरुमलै पहाड़की तलहटी में जो गाँव है उसका नाम 'वेगवूर्' है । यह 'मुर्गेना' का है, जो 'जयकोट • चोल मण्डलम्' के 'पङ्गळनाडु' का एक डिवीजन ( भाग ) है ।
[South Indian Ins, I n° 67 (p. 95 - 99 )