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________________ सौदत्तिका लेख २०१ [ स्वस्ति । ( उक्त मितिको ), त्रिलोकचन्द्र भटारके शिष्य रविचन्द्रभहार ने 'सन्यसन' धारण किया और मृत्युको प्राप्त हुए । कोण्डकुन्दान्वय तथा देसिंग - गणके भानुकीर्ति भटारने उनको स्वर्गयात्रा का यह स्मारक वनवाया । ] s ·· [ EC, XII, Gnhhi tl n° 57 ] १५९ वरुण --- कन्नड़ - भन्न •••९९• (काल लुप्त ) = सभवत. लगभग ९८० ई० [ वरुण गाँव में वसवगुढीके सामनेके स्तम्भपुर ] , • ९९''''स्य सकळ सममेन्दु द गेय्दु सन्यसद ..... निज - स्तिति [ मुनित्रत धारण करके दिवगत होनेवाले एक जैन यतिका स्मारक । ] [ EC, III, Aly sore tl, n°40] १६० सोदत्ति-कन्नड [ शक ९०२=९८० ई० ] र कुळान्वयनृपरु पट्टढ पतब नेगळेनिप गावुण्डुगळु विद्यर्जिनेन्द्रपूजेगे नेट्टने धान्यगळोगे पो ( दिद ) कुळम ॥ रट (ड) र पट्ट जिनालय किट्टवादय्यतोक्कलनुमतदिन्द कोट्टर्जिनेन्द्रपूजेगे नेट्टने घ ( प ) || दीपावलिय ( प ) के देवर सोडरिंगे गाणद लोम्मानेणे ॥ श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छन जीया त्रैलोक्यनाथस्य शासन जिनशासन || स्वस्ति समस्तभुवनाश्रय श्रीप्रि ( पृ ) थ्वीवल्लभं सत्याश्रयकुळ तिळक महाराजाधि राज- परमेश्वर-परमभट्टारक चालुक्य (क्या ) भरण श्रीमत्तैलपदेवर विजयराज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धियिं सत्तम ।
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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