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________________ ૩૮ जैन- शिलालेख संग्रह डढे हसीवृन्दमटट्य गेटपुटुचकोरीचय चञ्चुविन्द्र कर्दुकल् सार्हप्पुडीग जडेयो इरिसलेन्दिद्दप सेज्जेगीरलू पढेढप्प कृष्णनेम्वन्तेसेदु विमलसत्कन्दलीकन्दकान्त पुदिढत्ती मेघचन्द्रनतितिलकजगद्वर्त्तिकीर्त्तिप्रकाश ॥ ४६ ॥ वैदग्ध्यश्रीबधूटीपतिरखिलगुणालकृतिर्मेधचन्द्रत्रैविद्यस्यात्मजात मदनमहिभृतो भेदने वज्रपान' सिद्धान्तव्यूह चूडामणिरनुपम चिन्तामणिर्भुजनाना योऽभूत्सौजन्यरुन्द्रश्रियमवति महौ वीरनन्दीमुनीन्द्र ||१७|| शब्दत्त (2) नमस्थली - डिनमणि काव्यज्ञचूडामणियस्तर्कस्थितिकौमुदीहि मकरस्तुर्यत्रयाब्जाकर । यस्सिद्धान्तविचार सारथिपणो रत्नत्रयीभूषण स्थेयादुद्व्रतत्रादिभूभृदशनि' श्रीवीरनन्दीमुनिः || १८ || यन्मूर्त्तिर्जगता जनस्य नयने कर्पूरपूरायते यद्वृत्तिर्विदुपा ततेश्रवणयोर्माणिक्यभूपायते । यत्कीर्त्ति ककुभा श्रिय कचभरे मल्लीलतान्तायते जेजीयाद्भुवि वीरनन्दिमुनिप सद्धान्तचक्राधिप ॥ ४९ ॥ श्रीकोन्दकुन्दान्वयाम्बरधुमणि विद्वज्जनशिरोमणि समस्तानवद्यविद्या विलासिनीविलासमूर्त्ति श्रीवीरनन्दि सै[द्धा ]न्तिक- चक्रवर्तिगळु श्रीमन्महा स्थान कोळनूर महाप्रभु हुलियमरसनुं मूरुपुरपञ्चमठस्थानङ्गलु ताम्र शासनम नोढि वरेयिसिमेनल्का शासनदोळन्तिर्दुदन्ती शीलशासनम बरेयिसिटरु [II] मङ्गलमहाश्री श्री श्री नमो .. [1] 1 [ जिस पाषाणपर यह लेख है वह कोन्नूरके परमेश्वरके मन्दिरकी दीवाल लगा हुआ है |
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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