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कडवा लेख
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[ इस शिलालेखमे बताया है कि राजा प्रभूतवर्ष ( गोविन्द तृतीय ) ने जब कि वे मयूरखण्डीके अपने विजयी विश्रामस्थलपर ठहरे हुए थे, चाकराजकी प्रार्थनापर शक सं० ७३५ में जालमङ्गल नामका गाँव जेन मुनि अर्ककीर्तिको भेंट दिया । यह भेट शिलाग्राम से स्थित जिनेन्द्रभवनके लिये दी गई थी। कारण यह था कि कुनुन्गिल जिलेके शासक विमलादित्यो उन्होने ( अर्ककीर्ति मुनिने ) शनैश्वर ( ? ) की पीड़ासे उन्मुक्त किया था ।
इस लेखमें पं० १-६४ तक राष्ट्रकूट राजाओ की प्रशसामात्र है । इसमें उनकी बशावली इस प्रकार दी हुई है:
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लेखप्रस्तुत नाम
( १ ) गोविन्द
(२) कक्क
I
(३) इन्द्र
( ४ ) वैरमेघ
1
( ५ ) अकालवर्ष
[ वैरमेघका चाचा ( पितृव्य ) ]
ऐतिहासिक नाम = गोविन्द प्रथम
= कर्क प्रथम
= इन्द्र द्वितीय
=दन्तिदुर्ग या दन्तिवर्म्मन् द्वि०
= कृष्ण प्रथम
(६) प्रभूतवर्ष
= गोविन्द द्वितीय
1
(७) धारावर्ष श्री पृथ्वीवल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर, द्वितीय | नाम - वल्लभ = ध्रुव ( प्रभूत वर्षका छोटा भाई ) (८) प्रभूतवर्ष श्रीपृथ्वीवल्लभ [ महा ] राजाधिराज परमेश्वर, द्वितीय नाम वलभेन्द्र = गोविन्द तृतीय ३४ वीं पक्तिमें कहा गया है कि अकालवर्षने अपने ही नामसे 'कण्णेश्वर' नामक मन्दिर बनवाया था। पंक्ति २९-३० से ऐसा मालूम पडता है कि यह मन्दिर शिवके लिये अर्पण किया गया था । पं० ८१ में बताया