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जैन-शिलालेख-संग्रह (३) उनके पुत्र श्रीमद् हरिवर्म-महाधिराज थे। (४), , श्रीमान् विष्णुगोप-महाधिराज थे। (५) , , , माधव-महाधिराज थे।
(६) उनके पुत्र, जो कदम्ब कुलवशीय कृष्णवर्म-महाधिराजकी प्रिय वहिनके पुत्र थे, अविनीत नामके श्रीमान कोगणि महाधिराज थे।
(७) उनके पुत्र दुविनीत थे। इन्होने अन्दरि, आलत्तूर, पोरुलणे, पेल्नगर और दूसरे स्थानोके युद्धोको जीता था । इन्होने किरातार्जुनीय के १५ सगॉपर टीका की थी।
(6) इनके पुन मुकर थे। (९) उनके पुत्र श्रीविक्रम थे, ये चौदहो विद्याओमे पारङ्गत थे ।
(१०) उनके पुत्र भूविक्रम थे। इन्होने विळन्दकी भयानक लडाईमें राजा पल्लवेन्द्रको जीता था, और सौ लड़ाइयोसे विजय लाभ करनेसे इनको 'राजश्रीवल्लभ' भी कहते थे।
(११) उनका छोटा भाई नव-काम था।
(१२) शिवमार-कोगणि महाराजका नाती श्रीपुरुष था, उन्हें पृथिवीकोगणि महाधिराज भी कहते थे।
(१३) उनके पुत्र, प्रसिद्ध गगवंशके स्वच्छ आकाशके सूर्य, कोगणि. महाराजाधिराज परमेश्वर श्री-शिवमार-देव थे। इनकी बहुत-सी प्रशसाका वर्णन है।
(१४) उनके पुत्र, मारसिंह थे।
जब वे अखण्ड गङ्ग-मण्डलपर राज्य कर रहे थे, उनका एक श्रीविजय नामका सेनापति था। उसकी प्रशंसा। उसने मान्य-नगरमें एक शुभ, विशाल जिनमन्दिर बनवाया। उसे श्रीमारसिहसे किपु-वेरु गाँव मिला था, वह उसने इसी अर्हत्-मन्दिरको भेंट कर दिया । इस गाँवकी सीमाये ।
शाल्मली गाँवमें रहनेवाले, कोण्डकुन्दान्वयके तोरणाचार्य थे। उनके शिष्य पद्मनन्दि थे। उनके शिष्य प्रभाचन्द्र थे, जिन्होने अपना आवास यही बना लिया था । जढियके तालावोकी नीचेकी जो जमीनें उनको दी गई थीं उनकी विगत । यह शासन (लेख) शक वर्ष ७१९ के ३ महीने बाद, आपाढ़ शुक्ला पञ्चमी, उत्तरभाद्रपद, सोमवारको निकला था।