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दशवकालिक सूत्र प्रथमा चूलिका. १०१ तं देहवास असुई असासयं, सया चए निश्चहिअद्विअप्पा । हिंदित्तु जाइमरणस्स बंधणं, उवेइ भिक्खू अपुणागमंगई गति मि
तदेहवासमशुचिमशाश्वत,सदात्यजतिनित्यहितस्थितात्मा । छित्त्वाजातिमरणयोवन्धनं, उपैतिभिक्षुरपुनरागमांगतिम् ॥२॥
इति भिक्खू नाम इसमममयणं समतं ॥ इति ब्रवीमि--इति भितुनामदशममध्ययनसमाप्तम् .
अह रइवका पढमा चूलिया ॥
॥ अथरतिवाक्या प्रथमा चूलिका ॥ इह खलु भो पन्बइएण उप्पण्णदुक्खेण संजमे अरइसमावनचित्तेणं श्रोहाणुप्पेहिणा अणोहाइपणं चेव हयरस्सिगयंकुसपोयपडागाभूआई इमाई अट्ठारस ठाणाई सम्म संपडिलेहिब्वाई भवंति। तं जहा-हं भो! दुस्समाइ दुप्पजीवी ॥१॥ लहुसगा इत्तरिया गिहीणं कामभोगा ||२|| भुज्जो असाइबहुला मणुस्सा ॥३॥ इमे अमे दुक्खे न चिरकालोवठ्ठाइ भविस्सइ ॥४॥ प्रोम्जणपुरस्कार ॥५॥ वंतस्स य पडिप्रायणं ॥६॥ अहरगइवासोवसंपया ॥७॥ दुल्लहे खलु भो! गिहीणं धम्मे गिहिवासमझे वसंताण ॥८॥ प्रायके से वहाय होड Hel संकप्पे से वहाय होइ ॥१०॥ सोवक्केसे गिहवासे, निरुवकेसे परिआए ॥१३॥ बंधे गिहवासे, मुक्ने परिपाए ॥१२॥ सावज्जे गिहवासे, अणवज्जे परिपाए ॥१३॥ वहुसाहारणा गिहीणं कामभोगा ॥१४॥ पत्चेनं पुनपावं ॥१५॥ अणिच्चे खलु भो! मणुप्राण जीविए कुसमाजलविंदुचंचले ॥१६॥ वहुं च खलु भो! पावं कम्मं पगडे ॥१७॥ पावाणं च खलु भो! कडाण कामाणं पुन्धि दुचिन्नाणं दुपडिकंताणं वेइत्ता मुक्खो नस्थि अवेत्ता तवसा वा मोसइत्ता ॥१६॥ अहारसमं पर्य भवइ, भवइ श्र इत्थ सिलोगो: