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________________ ८० जैन साहित्य संशोधक' तो सुउ सकित्तिधवलियादियंत सिकित्ति सिंह विलच्छिकंतु ॥ सिरिकसंग मंडणू मुटु, गुणकिति जॅईसरु जए श्रदु । जसकिति किति मंडिय तिलोउ तो सीसु मल्यकित्ति जिश्रसोड ॥ गुणभट्ट भट्ठे तो पट्टि सूरि जें जिरावयणामिउ रसिउ भूरि । सिरि जसवाल - कुलगह ससंकु, सिरि उल्हासाहु सया संकु || तो जाया गयँसिरि णामधेय, तहि सुन हंसराजु दया श्रमेय । उल्हा चउधरियहु णारि श्ररण, भावसिरिणाम शियगुणपसरण || तत्त चारि हारिमल्ल, सिरि परमसिंह जिउ श्रुतुल्ल । लच्छीहरुमाणिक मणिसमाणु, घेना रायालयविमा || पत्ता - सिरि हंसराय चउधरिय घरे विजसिरि भज्जा महिया । त सुय गुणसायर सुहपउरेसर परिमियमयगणरहिया || तर्हि लल्ला रयण सुबुद्धिधाम, मयणुजि वीरू मंडेहिहाणु | सिरि परमसिंह भज्जा सुपुज्ज, वीराणामे वरगुणसमुज ॥ तर्हे सुड सोनिग गामेण धीरु, सूआ घरिणि पसहु जणि श्रभीरु । वोई वल्लहलहंगवग्ग, वीधो हिहाण सयदलकरग्ग । रणजि घरिणी मीया अहिक्ख, सिरि परमसिंह घरे लीलसिक्ख । तर्हे चारिपुत्त हियपियरचित्त सिरि चित्त वाल, डालू विचित्त ॥ तीयउ कुलदीव सो पयच्छु, तह मयणवालु चउर पसत्यु | माणिक माणिणि काममल्लि, लखणसिरि णाम पारो मतल्लि ॥ घेगा। घरिणिउ णं कामऋत्यु, संगहिउ जाहि जिराधम्मवत्यु | मयणाभज्जो यति माह भीय गामेण सया सोलण सीय ॥ लल्ला पिय मणसिरि पढम श्रण, पट्टो मंगाभिक्खो सुवण्ण । सुश्र रामचंद्र कुलकमलनंदु, नंदउ चिरु इन्ह णं वीयचंदु । नंदा पूना वे भज्जन्तु, चिरु जीवउ वीरू कमलवन्तु ॥ पयाहं मति सिरि पोमसिंह, जिरा सासराणंदरावणसिंह । विज्जुलचंचलु लच्छी सहाउ, श्रालोइवि हुउ जिणधम्मभाउ | जिरा गंधु लिहाविउ लक्खु एक्कु, सावयलक्खाहारातिरिक्कु । मुणि भोय भुंजाविय सहासु, चउवीस जिगालउ किउ सुभासु ॥ घना चउधारेय निमित्त दवु, तेराज्जिर लाइविजें उच्व । पुरुवजिणायद जि विचित्तु, ससिहरु सुपाडिहेरत ॥ म्मिविउ भवंबुहि जाणवन्तु, रयणत्तयजुयजुयपासजुक्त । कारिय पठ्ठ जिसमा दिट्ठ, अवलोइवि सयल सचित्तिदिठ्ठ पता - गंदउ सिरिहंसराउ सुहउ, गंदउ परमसिंहु ससुउ । गंदउ परिवार लच्छिकलिउ, गंदर लोड गुणोह जुउ ॥ श्रायासस्स जिणस्स य जिह अंत कोवि लहइ न गुणस्स । सिरि पोमसिंह तिह ते को पारइ गुणणिहाणस्स ॥ १ सिरि परमसिंह पउम इह लोप जड़ ग होतु ता पउमा । कीला कत्थ करती सुदाणपूया विणोप ि॥ २ ॥ [ खण्ड २ ४ कीर्तिसिंह, डूंगरसिंह का पुत्र । ५ गुणकीर्ति यतीश्वर । ६ यशः कीर्ति । ७ मलयकीर्ति यशः कीर्ति के शिष्य 1 ८ जिनवचनामृतसिक । ९ गयसिरि जाया जश्री नामकी भार्या । १० ज्येष्ठ — जेठा ।
SR No.010005
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year
Total Pages127
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size9 MB
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