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अंक १]
महाकवि पुष्पदन्त और उनका महापुराण
परिशिष्ट नं. ३ (उत्तरपुराण के अन्त का कुछ अंश ।) णिवुए धीरे गलियमयरायउ इंदभूह गणि केवलि जायउ। सो विउलइरिहे गउणिव्याणहो कम्मविमुक्को सासयठाणहो ॥१॥ तहि वासरे उप्पएणउ केवलु मुणि हे सुधम्महो पक्खालियमलु । तं णिव्वाणए जंवू णामहो पंचमु दिवणाणु हयकामहो ॥२॥ गंदि सुणदिमित्तु अवरुवि मुणि, गोवद्धणु चउत्थु जलहरमणि । ए पच्छए समत्य सुयपारय गिरसियमिच्छामयभवणीरय ॥३॥ पुण वि विसहु जह पोहिल खत्तिउ जयणाउ वि सिद्धत्थुह यत्तिउ। दिहिसेणकउ विजउ वृद्धिल्उ, गंगु धम्मसेणु विणीसल्लउ॥४॥ पुणु णक्खतउ पुणु जसवालउ, पंडु णामु ध्रुवसेणु गुणालउ ।
घत्ता । अणु कंसउ अप्पउ जिणे वि थिउ पुणु सुहदु जणसुहयरु । जसभर्दु श्रखुद्द अमंदमहणाणे णावइ गणहरु ॥५॥ भबाहु लोहंकु भडारउ आयारांगधारि जससारउ । एयहिं सव्वु सत्यु मणे माणिउ, सेसाई एक्कु देसु परियाणिउं ॥ ६ ॥ निणसणेण वीरसेणेण वि जिणसासणु सेविउ मयगिरिपवि । पुढ्ययाले णिसुणिउं सई भरई, राएं रिखु-बहुदावियविरहे ॥ ७ ॥ एवं रायपरिवाडिए णिसुणिलं, धम्मु महामुणिणाहहिं पिसुणिउ । सेणियराउ धम्म सोयारहं. पच्छिलउ वजियभयभारहं ॥८॥ ताहमि पच्छए बहुरसणडिए, भरहे काराविउ पद्धडियए। पदेवि सुणेवि आयएणेवि इयकले, पयडिउ मन्माएं इय माहियले ॥ ६ ॥ कम्मक्खयकारणु गणे दिउं, एम महापुराणु मई सिउं ।। एत्यु जिणिंद मम्गे श्रोणाहिउ, बुद्धिविहीणे जं मई साहिउ ॥ १०॥ तं महो खमहो तिलोयही सारी, अरुहुग्गय सुअएवि भडारी। चउवीस वि महुं कलुस स्वयंकर, दंतु समाहि बोहि तित्थंकर ॥ ११ ॥
घत्ता। दुई छिंद णंदउ भुयणयले णिरुवम करणरसायणु । आयएणउ मरणउ ताम जणु जाम चंदु तारायणु ॥१२॥ वरिसउ मेहजालु वसुहारहि, महि पिञ्चउ बहु धण्णपयाराहिं। णंदउ सासणु वीर जिणेसहो, सेणिउ णिग्गउ गरयणिवासहो ॥ १३ ॥ लग्गउ ण्हवणारंभहो सुरवइ, णंदड पय सुहं णंदउ परवइ।
णंदउ देस सुहिक्खु वियंभउ, जणु मिच्छतु दुचित्तु णिसंभउ ॥ १४॥ रखों का नाश हो और यह कर्णरसायन काव्य पृथ्वीतल पर विस्तार लाम करे । जब तक चन्द्रमा और तारे है. तब तक लोग इसे सुनें और इसका आदर करें ॥ १२॥
पृथ्वी पर मेघ खूब बरसें और तरह तरह के धान्य पकें, वीरभगवान का शासन बढ़े, राजा श्रेणिक नरक निवास से बाहर निकले और (तीर्थकर होने पर ) इन्द्र उस का जन्माभिषेक करें । प्रजा का सुख बढे और राजा आनन्दित हो। देश में सुाभक्ष (सुकाल) हो और लोगों का मिष्यात्व भाव नष्ट हो ॥ १३-१४॥अंकित
चित्लामिणकडेमा ॥ १४॥ चन्द्रमा और