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________________ अंक १] महाकवि पुष्पदन्त और उनका महापुराण १३ MAHARMAnamnnow १ अकलंक, २ कपिल, ३ फणार या कणाद, ४ द्विज (ब्राह्मण), ५ सुगत (बौद्ध), ६ पुरन्दर (चार्वाक ), ७ दन्तिल, ८ विशाख, ६ लुद्धाचार्य, १० भरत ( नाट्य शास्त्र कर्ता ), ११ पतंजलि (व्याकरण भाष्यकार ), १२ इतिहासपुराण, १३ व्यास, १४ कालिदास, १५ चतुर्मुख खयंभू, १६ श्रीहर्ष, १७ द्रोण, १८ कवि ईशान बाण, १६ धवल जय धवल सिद्धान्त, २० रुद्रट, २१ न्यासकार, और २२ जसचिन्ह (प्राकृत लक्षण कर्ता), २३ जिनसेन, २४ वीरसेन। यशोधर चरित के अन्त में केवल एक ही ग्रन्थकार कवि 'बच्छराय' (वत्सराज) का उल्लेख किया गया है जिस के कथासूत्र के आधार पर उक्त चरित की रचना की गई है"मह दोसण दिजह पच्चे कइइ कडवच्छराय तं सत्त लइह।" यह तो करने की आवश्य कि ये वच्छराय कोई जैनकवि ही थे । क्योंकि यशोधर की कथा जैनसाहित्य की ही चीज है। उत्तरपुराण के अन्त में महावीर भगवान् के निर्वाण के बाद की गुरुपरम्परा दी गई है। उसमें लोहाचार्य तक की परम्परा त्रिलोकप्रज्ञप्ति, जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, गुणभद्रकृत उत्तरपुराण, इन्द्रनन्दिकृत श्रुतावतार के ही समान है । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में जहां जसवाहु नाम है, वहां इसमें भद्रबाहु है । एक वडा भारी अन्तर यह है कि इसमें गोवर्धन के बाद भद्रबाहु का नाम ही नहीं है, साथ उसके बदले कोई दूसरा नाम भी नहीं दिया है । इतिहासज्ञों के लिए यह बात खास ध्यान देने योग्य है। सब के बाद इसमें जिनसेन और वीरसेन का नाम दिया हुआ है, जो प्राचारंग के एकदेश के ज्ञाता थे। जान पड़ता है ये जिनसेन संस्कृत शादिपुराण के कर्ता से भिन्न हैं। आदिपुराण (पुष्पदन्तकृत) के पांचवे परिच्छेद में नीचे लिखे देशों के नाम दिये हैं जिन्हें भगवान् ऋषभदेव ने बसाया था पल्लव, सैन्धव (सिन्ध), कोकण, कौशल, टक्क, आभीर, कीर, खस, केरल, अंग, कलिंग, बंग, जालंधर, वत्स, यवन, कुरु, गुर्जर, बर्बर, द्रविड, गौड, कर्णाट, वराडिव (वैराट?), पारस, पारियात्र, पुनाट, सूर, सोरठ, विदेह, लाड, कोग, वैगि, मालव, पांचाल, मगध, भट्ट, भोट (भूटान), नेपाल, ओण्द, पौण्डू, हरि, कुरु, भंगाल। . पुष्पदन्त के बनाये हुए दो ग्रन्थ हमें प्राप्त हुए हैं, एक तिसठिमहापुरिसगुणालंकार जिस का दूसरा नाम महापुराण है और जिसके आदिपुराण और उत्तरपुराण ये दो भाग हैं । इसकी श्लोकसंख्या १३ हजार के लगभग है और इसमें सब मिलाकर १०२ परिच्छेद हैं । श्रादिपुराण में प्रथम तीर्थकर आदिनाथ का और उत्तरपुराण में शेष २३ तीर्थंकरों का और अन्य शलाकापुरुषों का चरित्र है । उत्तरपुराण में पद्मपुराण और हरिवंशपुराण भी शामिल हैं और ये पृथक् रूप में भी अनेक पुस्तकभण्डारों में मिलते हैं। पुष्पदन्त का दुसरा ग्रन्थ यशोधर चरित है जिस के चार परिच्छेद हैं और छोटा है। इसमें यशोधर नामक राजा का चरित्र वर्णित है जो कोई पुराण पूरुष था। उक्त दो अन्यों के सिवाय नागकुमार चरित नाम का एक ग्रन्थ है जो कारंजा (वरार) के पुस्तकभण्डार में है और जिस के प्राप्त करने के लिए हम प्रयत्न कर रहे हैं। १ यह एक जैन कवि है। इस के बनाये हए दो ग्रन्थ हमें प्राप्त हुए हैं-पउमचरिय'या रामायण जिसके पिछले कुछ सर्ग उस के पुन त्रिभुवन स्वयंभुदेवन पूर्ण किए हैं और दूसरा हरिवंशपुराण जिस का उद्धार विक्रम की १६ वी शताब्दि के एक दूसरे विद्वान्ने किया है। शायद इसका आधिकांश नष्ट हो गया था। ये दोनों ग्रन्थ अपभ्रंश भाषा में ही हैं। इनका विस्तृत परिचय शीघ्र ही दिया जायगा ।
SR No.010005
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year
Total Pages127
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size9 MB
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