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________________ जैन साहित्य संशोधक खंड ष्ठितं ' थी 'संतानीय' सूधानी बे लीटिओ मूकी दीधेली के आने लीधे तैम ज केटलाक खोटापाठोने लीधे तेमनी नकल उपरथी भापांतर कर केवळ अशक्य छे. मूळ लेख १. ओ० संवत् १२९६ वर्षे फाल्गुण वदि ५ रवी कारणाने ब्रह्मक्षत्र गोत्रोत्पन्न व्यव० मानू पुत्राभ्यां व्य० दोल्हण आल्हणाभ्यां स्वकारित श्रीमन्महावीर देव चैत्य ॥ २. श्रीमहावीर जिन मूल बिंबं आत्मश्रेयो []] कारितं । प्रतिष्ठितं च श्रीजिनवल्लभ सूरिसंतानीय रुद्रपल्लीय श्रीसदभयदेवसूरि शिष्यैः श्रीदेवभद्र सूरिभिः ॥ भाषांतर ॐ. (लौकिक) वर्ष १२९६ ना फाल्गुण वदि पंचमीने [दिवसे] करिग्राममा ब्रह्मक्षत्र ज्ञातिना व्यापारी मानूना बे पुत्रौ व्यापारी दोल्हण अने आल्हणे पोते बंधावेला श्रीमन्महावीर देवना मन्दिरमा श्री महावीर जिननी मुख्य प्रतिमा, पोताना कल्याणमाटे करावी. तेनी प्रतिष्ठा श्रीजिनवल्लभ सूरिना 'संतानीय' रुद्रपल्लीय श्रीमत्सूरि अभयदेवना शिष्य श्रीसूरि देवभद्रे करी: ३. जनरल कनिंगहाम कहे के शिववैद्यनाथना देवालयना इतिहास साथे ा लेखनो कोई संबंध नथी. १. पक्ति १ ली-ओं वाचवं; कारग्रामे ना र तथा प्रजोडेला छे ते भूल छे ब्रह्म वाचवं; म नी उपर एक सीकोल मात्र काढी नाखेल छ कदाच 'भातपूत्राभ्यां खरोपाठ होय. कारण के त तमा न ओळखाय तेवा नथी. पण ते बराबर नथी; 'मान' शब्द ज बराबर छे. कारण के तेनी पहेलो व्य व्यवहारी शब्द पडलो छ जे मातृात्रा. पाठ केता निरर्थक अने असंबद्ध थई जाय छे-संपादक.] . __ पंक्ति २ जी-श्रेयोथै नो,थ जतो रह्यो छे; संतानीय नो ता स्पष्ट नथी. ' ६. वर्षेने भाषांतर लौकिक वर्षे करूं ह्यु, कारण के विक्रम संवत् पछी वर्षेने बदले घणीवार लौकिक वर्षे वापर घामा आवे छे. पश्चिम तथा उत्तर पश्चिम हिंदुस्थानमा विक्रम संवत्नां वर्षोंने लौकिक वर्षों कहे छे. अने शक संवत्ने शास्त्रीय वर्षों कहे छे. कारण के ते ज्योतिष विगेरे विषयोमा आवे छ. . . .. लेखमा जे फागुण लख्यु छे ते अर्ध प्राकृत भने अर्ध संस्कृत रूप छे. 1. मल बिंब शब्दने भाष'तर कर्या शिवाय ज हुँ रहेवा दऊ छु. तेनो खास मर्थ शो छे तेनी खबर नथी. हुँ धारू छु के बीजी नानी मोटी प्रतिमाभोथी तेने खास भोळखावा माटे तेनु नाम आq पाडयु हशे. एनो अर्थ कदाय । • मुख्य प्रतिमा' थई शके. [एज अर्थ थाय छे. सं०] १. प्रतिष्ठितं च ए संस्कृतना नियम प्रमाणे शुद्ध नथी. पण जैन पुस्तकोमा ए धो ठेकाणे जोवामा भाषे छे. खरी हराते प्रतिष्ठापितं च भगर प्रतिष्ठा ता.च एषो पाठ जोईए,
SR No.010005
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year
Total Pages127
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size9 MB
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