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________________ अक१] कुंरपाल सोनपाल प्रशस्ति [६ ३४. तु लेभाते । प्राज्यपुण्यप्रभावतः देवगुवोंः सदा भक्तौ । शश्यत्ती नन्दतां चिरम् । ३१ । मथ तयोः परिवारः । सङ्घराज [ ----1--1 ३५. ------ -------- --------। ३२ । सनषः स्वर्णपाल - 1 ---- [चतुर्भुज ] - ------- [ पुत्री ] युगलमुत्तमम् 1 ४३ । प्रेमनस्य त्रयः [भाः ---] ३६. षेतसी तथा । नेतसी विद्यमानस्तु सच्छोलेन सुदर्शनः । ३४ । धीमतः सङ्घराजस्य । तेजस्विनो यशस्विनः । चत्वारस्तनुजन्मान ------ मताः ३५कुंरसालस्म स३७. नार्या । - - - - - - - - - - - - - - - - । - - - - पतिप्रिया । ३६ । तदङ्गजास्ति गम्भीरा जादो नाम्नी [स]----------- ज्येष्ठमलो गुणाश्रयः । ३७। ३८. सङ्घश्रीसुलसश्रीर्दा । दुर्गश्रीप्रमुखैनिः । वधूजनैयुती भाता । रेषश्री नन्दनी सका । ३८ । भूपण्डलसमारङ्ग । सिन्ध्वर्कयुक्त [-------------- ------1३८13 लेख का सारांश (लेख की भाषा सरल होने के कारण पूरा अनुवाद नहीं दिया) पंति १-३ मंगलाचरण । , ४-५ प्रशस्ति की रचना काल | विक्रम संवत् चन्द्र ऋषि रस भू अर्थात् १६७१,शफ संवत् १५३६, राध (वैशाख) मास, वसंत ऋतु, शुछ पक्ष, सुतीया तिथी) गुरुवार रोहिणी नक्षत्र । ६ अंचल गच्छ की प्रशंसा । ७ उग्रसेनपुर (आगरा नगर) की शोभा का वर्णन | ८-९ उपकेश (ओसवाल) शातीय, लोढा गोत्रीय, श्रीअंग की स्तुति । १. उस के पुत्र वेसराज के गुणों का वर्णन | ११ वेसराज के पुत्र जेठू और श्रीरंग का वर्णन । ११-१२ जेहू के पुत्र जीणामहि और मसीह ] का वर्णन । १२ मीरंग का पुत्र राजपाल, तिस का वर्णन । १३ राजपाल की गज दरबार में बडी प्रतिष्ठा था, और उस के ऋपभदास और पेमन दो पुत्र थे। १४ उन में ऋषभदास (अपरनाम रेषा) पहा था। इस की भार्या रेषश्री । १५-१६ शपभदास ने मंदिर में श्रीपष्मप्रभ के नये विंब की प्रतिष्ठा कराई थी। और यह निश्चय पूर्वक नहीं कहा जा सका कि पंफि ३४ के अंत और पंक्ति ३५ के आदि में कितने मक्षर २ प्रतीत होता है कि प्रशास्ति या पयासमो गई।
SR No.010005
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year
Total Pages127
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size9 MB
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