________________
८४
जैन साहित्य संशोधक
[भाग १ तेमना माटेज तैयार करवामां आवेला भोजनना बौद्ध धर्मनी उत्पत्तिनी पूर्वे थई गया छे. कारण आसंत्रण सुद्धांनो स्वीकार करे छे.
के, मो, बुल्हरना मत प्रमाणे आपस्तम्ब सूबनी ब्राह्मण संन्यासी अने जैन यति माटे विहित करे. रचनानो काळ मोडामा मोडो ई. स. पूर्व पांचमी ला नियमोनी जे तुलना आपणे उपर करी छे, ते अगर चोथी शताब्दीमा मृकयो जोईए.' बौधायन उपरथी ए स्पष्ट जणाय छे के जैनोना नियमो ते ते आपस्तम्बनी पूर्वे थपलो छे. अने डॉ. ब्राह्मणोनी नकल मात्र छे. परंतु अहीं ए प्रश्न थाय बुरहरना२ कहेचा प्रमाणे ते बन्ने बच्चेना छ के 'निग्रंथ 'ए सीधी रोते (साक्षात् ) ज वोर्नु अंतर दशकथी नहीं परंतु शतकथी संन्यासीनी नकल छ के यरंपरापूर्वक ? केम के मापवा जेटलं छे. गौतम ए बौधायनथी पण एवो पण तर्क थई शके तेम छे के ब्राह्मण संन्या- पूर्वकालीन छ. आ हिसाबे गौतम, अने घणुं करीने सिनी प्रथम बौद्धोए नकल करी हशे अने बुद्धभि- बौधायन पण, बौद्धधर्मनी उत्पत्तिनी पूचे थई अनी, पाछळयी निथोप. परंतु हुँ जेस उपर गएला निश्चित थाय छे. हवे उपर वर्णवेला ब्राह्मण सूचची गया हुं तेम ओ तर्क प्रमाणशून्य छे. कारण संन्यासमार्गना सघळा नियमो तो खास गौतम के वधारे प्राचीन अने प्रमाणभूत आदर्शने छोडी, द्वाराज बांधवामां आवेला छे तेथी ते मार्गन योजैनो अल्पप्रतिष्ठित अने नकली एचा पोताना प्रति- धोनी नकलरूपे मानयो ए प्रत्यक्ष भूल छे. धारो के स्पर्धी बोद्धार्नु अनुकरण करे ६ असंभवित छ. उक्त धर्मशास्त्रोनी रचनाना समयना विषयमा आथी एज कहेदु वधारे योग्य जणाय छे के तेमणे प्रो. वुलहरे करेलु कथन कदाचित् खोटुरे; तो मीधी रोनेज ब्राह्मणानुं अनुकरण कर्यु हतुं. आ एण ते धर्मशास्त्रो वौद्धधर्मनी उत्पत्ति पछी लैकामुख्य दलील उपरांत, प्रस्तुत प्रश्न विरुद्ध श्रीजी ओ बीत्यां वाद रचायां हता, एम तो कोई पण रीते पण ए एक दलील छ के--उपर जणान्या प्रमाणे सिद्ध करी शकाय तेम छेज नहीं. तथापि मानो
केटलाक ब्राह्मण आचारानु ज्यारे जैनोए अनु- के, कदाचित तेम पण सिद्ध करी शकाय-जी के करण कयु छ त्यारे बौद्धोए तेस कयु जणानुं नथी तेम थर्बु तो सर्वथा असंभावितज छे-तो पण आ तेथी एम साबीत थाय छे के बौद्धो जैनोना आद- स्मृतिकार ब्राह्मणो पोते जेमने आधुनिक कालमा शसत विल्कुल हता नहीं.
उत्पन्न थएला मानता होय तथा जेमने मिथ्यामतिमहीं एक पत्रो पण वितर्क उठवानो संभव रहे ओमानी तिरस्कारता होय तेवा बौद्धो पासेथी छे के ब्राह्मण संन्यासीज जैन निर्मथ अथवा बौद्ध मोटा प्रमाणमा पोताना भाचार-नियमो ग्रहण करे, भिक्षुनी नकलरूपे फेम न होय ? परंतु आ वितर्क ते सर्वधा अशक्य वाबत छे. तेमज नास्तिको पातदन प्रगाणविरुद्ध छे. संन्यासमार्ग ब्राहाणोनो सेथी पोते लीधेला नियमोने ब्राह्मणो एटला बंधा आश्रम व्यवस्थानुं एक खास अंग छे. अने आ पवित्र मान ए पण नहीं मानवा जेवी यायत छे. आश्रम व्यवस्थाने कदाचित् ब्राह्मण धर्म जेटली परंतु, आधी उलटू. बौद्धोपज ब्राह्मणोना नियमानु प्राचीन न मानीए तो पण जैन तथा बौद्ध धर्मथी अनुकरण कर्यु हतुं, एम मानवू यनियुक्त अने तो नेने अवश्य प्राचीन मानवी पडे तेम छे. वळी प्रमाणसंगत लागे छे. कारण के ब्राह्मणोनी बुद्धिब्राह्मण संन्यासिओ ज्यारं आखा भारतवर्षमा प्रस. विषयक अने नीतिविषयक उत्कृष्टताने माढ़े चौद्धो रेला हता, त्यारे बौद्धो तेमना संपनी स्थापना हमेशा ऊंचो अभिप्राय धरावता अने ते बदल यहु
या पछी, निदान प्रधमनी व शताब्दीमा तो, मान करता हता. एज कारण के के जैना तेमज तेओ मात्र देशना एक अमुक भाग जेवा संकुचित बौद्धोए ब्राह्मण ए शब्दने एक मानसूचक बिरुद प्रदेशमांज देता हता. तेथी आखा देशमा संन्या- -- सिआ माटे नेओथादशभुत वन्या होय एम मानवू introdnction, p. ALIII.
9. Sacred Laws of the Aryas, part 1, सर्वथा प्रमाण शून्य छे. त्रीजी वावत वळी ए छे २... c. p. XIII. केवारण धर्मशालना कर्ता गौतम निश्चितरूपे ३L. c. p. 19.