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जैन साहित्य संशोधकः
[भाग १
होवाथी ते 'सिंदुरकर ' ना नामे तथा सोमप्रभाचार्य रचित होई तेमां एकदर १०० पद्योनो संग्रह होवाथी ' सोमशतक' ना नामे पण घणीक वखते लखाय-ओळखाय छे. ए प्रबंध जैनसमाजमां घणोज प्रसिद्ध छे अने अनेक स्त्रीपुरुषोना मुखे कंठस्थ होय छे. ए प्रबंध भर्तृहरिना नीतिशतकनी शैलिमा लखाएलो छे; अने अहिंसा, सत्य, अस्तेय, शील, सौजन्य आदि विषयो उपर संक्षिप्त परंतु हृदयंगमते तेमां विवेचन करेलुं छे. एनी रचना बहुज सरल, सरस अने सुबोध छे. एमांनां केटलाक यो आ प्रस्तुत ग्रंथमां - कुमारपाल प्रतिबोधमां पण ग्रथित थपलां नजरे पडे छे.
श्रीजी ग्रंथ 'शतार्थ काव्य ' नामे छे. ए ग्रंथ सोमप्रभाचार्यना संस्कृत भाषाज्ञानविषयक अनुत्तर पांडित्यने प्रकट करे. छे. ए ग्रंथ मात्र एक वसंततिलका छंद रूपे छे, जेना जुदा जुदा तो अर्थो करवामां आव्या छे. आ कृतिना लीधे विद्वानो तरफधी तेमने शतार्थिकनुं खास पांडित्यसूचक उपनाम प्राप्त हतुं अने तेथी पाछळना घणाक ग्रंथकारो तेमने ए उपनाम साथे ज उल्लेखे छे. ए एक वृत्ताTere iथना भिन्न भिन्न सो अर्थो तेमणे जाते ज टीका करीने बताया छे. टीकाना प्रारंभमां पांच श्लोको लखी स्वविवक्षित सोए अर्थोनी अनुक्रमणिका आपी छे. प्रारंभमां जैनधर्मना २४ तीर्थकरोना अर्धो लखी ये ब्रह्मा, नारद, विष्णु आदि वैदिक देवो विगेरेना अर्थो पण आलेख्या छे. अने छेवटे पोताना समकालीन एवा, वादी देवसूरि अने हेमचंद्राचार्य जेवा जैनधर्मना महान् धर्मगुरुओना; जयसिंह देव, कुमारपाल, अजयदेव अने मूलराज जेवा गुजरातना क्रमिक ४ चौलुक्य राजाओना; कवि सिद्धपाल जेवा सर्वश्रेष्ठ नागरिकना; अने अजितदेव तथा विजयसिंह नामे पोताना वने गुरुओना अर्थो पण अवतार्या छे. सर्वात स्वकीय अर्थ पण बेसार्यो छे अने समाप्तिमां कोई शिष्यना मुखेथी आत्मप्रशंसापर एवी पांच पद्योवाळी संक्षिप्त प्रशस्ति पण कहेवरावी छे.
आ प्रशस्तिमां जणाव्या प्रमाणे सोमप्रभ गृहस्थावस्थामां प्राग्वाट ( पोरवाड ) जातिना वैश्य हता. तमना पितानुं नाम सर्वदेव, अने पितामहनुं नाम जिनदेव हतुं. जिनदेव कोईक राजानो मंत्री हतो अने ते पोताना समयमा बहु प्रतिष्ठित पुरुष हतो. सोमप्रभे कुमारावस्थामां ज जैनदीक्षा लई लीघी हती, अने तीव्रबुद्धिना प्रभावे समस्त शास्त्रोनो तलस्पर्शी अभ्यास करी आचार्य पदवी प्राप्त करी हती. तेमनी तर्कशास्त्रमां अद्भुत पटुता हती, काव्यविषयमा घणी त्वरितता हती अने व्याख्यान आपवामां बहु कुशलता हती.
कुमारपाल प्रतिबोध साथै उक्तानुसार सोमप्रभाचार्यनी वर्तमानमां ४ कृतिओ उपलब्ध थाय छे. आ कृतिओमां कालानुक्रमथी प्रथम कृति तेमनी सुमतिनाथ चरित्र अने वीजी सूक्तिमुक्तावली होय तेम जणाय छे. बृहट्टिम्पनिका नामे एक प्राचीन जैनग्रंथसूचिमां सुमतिनाथचरित्रनी रचना कुमारपालना राज्यमां थई हती एवो उल्लेख करेलो छे. शतार्थवृत्तनी वृत्तिना अंते पण ते चरित्रनुं नाम आवेलुं होवाथी, ते वृत्तिनी पहेलां एनी रचना थई हती एम तो स्वतः सिद्ध थाय छे. शतार्थवृत्तनी रचना ई० स० ११७७ थी ११७९ नी वध्वे थई होय, एम मानी शकाय. कारण के एनी अंदर अजयदेवनी पछी गुजरातनी गादिए आवेला मूळराजनो उल्लेख छे. आ मूळराज इतिहासमां बाळ मूळराजना नामे प्रसिद्ध छे. अने तेणे मात्र बेज वर्ष - ई. स. ११७७ थी ११७९ सुधी - राज्य कर्यु हतुं. कुमारपाल प्रतिबोध तेमनी छेली कृति होय तेम लागे छे.
१ जुओ- - पृष्ठ १४५, १९१,४२२ इत्यादि उपर आपेला संस्कृत पद्ये . २ मूळ वृत्त आ प्रमाणे छे:
कल्याणसार सवितान हरेक्ष मोह । कान्तारवारणसमानजयाद्यदेव । धर्मार्थकामदमहोदयवीरधीर। सोमप्रभावपरमागमसिद्धसूरे ॥
३ ' सोमप्रभो मुनिपतिर्विदितः शतार्थी ।' मुनिसुंदररित गुर्वावली ।
' ततः शतार्थिकः ख्यातः श्रीसोमप्रभसूरिराट् ।' गुणरत्नस्स्कृित क्रियारत्नसमुचय ।
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