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जैन साहित्य संशोधक
भाग १
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Anary
करी जे रीते कुमारपाले जैनधर्मनो संपूर्ण स्वीकार को हतो तेनुं सामान्य वर्णन आ ग्रंथमा आपवामां आव्यु छे. ग्रंथकारे आ ग्रंथनुं नाम 'जिनधर्म-प्रतिबोध' ए, राख्यु छे'. परंतु, ग्रन्थनामंते, पुष्पिकालेखमां 'कुमारपाल-प्रतिवोध ' एवं नाम लखलं मळवाथी, तेम ज ग्रंथगत विषयनो नाममानना निर्देशथी पण वाचकोने ख्याल आवी शके तेवा हेतुथी; में आ पुस्तक उपर ए ज नाम अंकित करवं वधारे उचित धार्यु छे.
आ ग्रंथनी प्रस्तुत आवृत्ति, गुजरातनी प्राचीन राजधानी पाटण शहर (जे वर्तमानमां घडोदराराज्यना कडीप्रांतमां एक साधारण तालुकानुं स्थान भोगवे छे) मांना जैन पुस्तक भांडागारमांथी मळी आवेला ताडपत्रात्मक पुस्तक उपरथी तैयार करवामां आवी छे. ए ताडपत्रना एकंदर २५५ पानां छे. प्रत्येक पार्नु २ फीट ७ इंच लांबुं अने मात्र २ इंच पहोळु छ, ए पानाना प्रत्येक पृष्ठ (एक बाजु) उपर प्रणथी पांच पंक्तिओ, काळी शाहीथी देवनागरी लिपिमा लखेली छे. दरेक पंक्तिमा लगभग १४० थी १५० जेटला अक्षरो आवेला छे. प्रत्येक पंक्ति त्रण विभागोमां व्हेंचाएली छे, अने दरेक विभागनी वश्चे एक एक ईच जेटली खाली जग्या राखवामां आवी छे. ए खाली राखेली जग्यामां, आखा पुस्तकनां वधां पानांओ भेगां बांधी लेवा माटे एक छिद्र पाडी तेमा संलग्न दोरी परोवेली छे. आ पुस्तक संवत् १४५८ मां खंभातमालखाएलं छे. आ समय पछी लखाएल वीज कोई ताडपत्र जैन भंडारोमां मारा जोवामां आन्यु नथी. आ उपरथी हुँ एम अनुमान करु छु के, गुजरातमां-अने साधारण रीते पश्चिम अने उत्तर हिंदुस्थानमां पण-ताडपन उपर पुस्तक लखवाना इतिहासमां आ पुस्तक सौथी अंतिम स्थान भोगवे छ. जैनानां ऐतिहासिक साधमो उपरथी जणाय छे के ईसवीनी १४ मी शताब्दिना प्रारंभमां ज ताडपत्रो उपर ग्रंथो लखवानो वहीवट कमी थवा मांड्यो हतो अने ताडपत्रोनुं स्थान कागळोए लेवा मांडयुं हतुं. ते वखत दरम्यान पाटण, खंभात, जेसलमेर (राजपूताना) आदि-जैन पुस्तक भांडागारो माटे प्रसिद्ध थएला-जूना शहरोमां ताडपत्र उपर लखेला जे विशाल पुस्तकसंग्रहो हतां ते वधाना एकी लाथे अने घाणी झडपथी कागळो उपर उताराओ थवा लाग्या हता. वर्तमानमा कागळ उपर लखेलां जूनामां जूनां जे पुस्तको उपलब्ध थाय छे, ते वधां तेज वखतनां लखेलां छे. तेम ज ताडपत्र उपर अर्वाचीनमा अर्वाचीन जे पुस्तको छे ते पण तेज वखतनां छे. ते पछी लखेलां ताडपत्रो मळतां नथी. आ उपरथी एम मानी शकाय के ए प्रदेशोमां कागळनो प्रवेश तेज वखते थएलो होवो जोईए. प्रकृत ताडपत्रना लेखन काळमां ताडपत्र उपर लखवानो प्रचार बहु ज विरल थई गएलो होवो जोईए. अने लहिआओ ताडपत्र उपर लखवाना अभ्यास अने शाहीनी बनावट विगेरेनी कळाने मुली जवानी तैयारीमा होवा जोईए. कारण के प्रकृत ताडपत्रं उपरतुं लखाण जनां ताडपत्रो करतां घणा ज हलका प्रकार दृष्टिगोचर थाय छे. १२ मा १३ मा सैकानां ताडपत्रोनी लिपि जेटली सुंदर अने शाही जेटली उत्तम होय छे तेटली आमां देखाती नथी. आ ताडपत्रनी शाही घणी ज फीकी अने अनेक स्थळेथी तो ते अत्यार आगमच खरी पडी-मुंसाई गई छे. कोई कोई पृष्ठमां तो पंक्तिओनी पंक्तिओ तेवी रीते अश्य थई गई छे अने तेना लीधे लखाण वाचवू पण बहु कठण थई पडे छे. त्यारे आना करतां २००300 वर्ष जनां ताडपत्रोनी शाही जोईए छीए तो आजे पण तेवीनी तेवी चळकती अने काळी देखाई आवे छे. जूनां ताडपत्रोनी जेटली लेखन-शुद्धि पण आ पुस्तकमां जळवाएली जणाती नथी. आनुं कारण ए छे के प्राचीनकाळमां लहिआओ साधारण रीते संस्कृत-प्राकृत भापान सामान्य ज्ञान धरावनारा थता हता. तेम ज घणाक विद्वानो ते वखते जाते ज पुस्तको लखता हता. तेथी ते वखतनां पुस्तकोमा साधारण रीते अशुद्धिओ बहु अल्प प्रमाणमां मळी आवे छे. परंतु प्रकृत ताडपत्रना लेखनसमयमां, ताडपत्रो उपरथी कागळो उपर ग्रंथो उतराववानुं काम धणा विशाल प्रमाणमां शरू थपलं होवाथी, तेटला कामने पहोंची वळे एटला, भापाज्ञानसंपन्न लहिआओना अभावने लीधे, मान, अक्षराकृति सम. . १ जिणधम्मपडिबोहे समत्थिमओ पढमपत्यावो । पृष्ठ ११५. " --जिनधर्मप्रतिवोधः क्लुप्तोऽयं गुर्जरेंद्र पुरे । पृ. ४१०.