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जग्मुस्तदा केऽपि कथंचनापि । मन्त्रीश्वरे धर्मधरा धुरीणे
तस्मिन् विशश्राम भरस्तु तेषाम् ॥ १० न वाहनं यस्य स तस्य वाहनं नासीद्धनं यस्य स तस्य वित्तम् । न चीरं यस्य स तस्य वस्त्रं कल्पद्रुकल्पः प्रददौ पृथिव्याम् ॥ ११ भुङ्क्ते स्म सर्वेष्वपि भुक्तवत्सु शेते स्म सुप्तेषु स यात्रिकपु ।
प्रबुध्यते स्म प्रथमं तदित्थं संघप्रभुत्वतमाचचार ॥ १२ प्रभूतभोज्यानि यहूदकानि सुगोरखान्युन्मदमानवानि ।
तस्यातिदुर्गेऽपि पथ प्रयाणान्युद्यानलीला सदृशान्यभूवन् ॥ १३
याप्रसंगेषु जगाम येषु
पुरेषु पै. रोच्छ्रिततोरणेषु ।
तेषामधीशैः सविशेषमेय
संमान्यमानः सममानयत्तान् ॥ १४ अन्ययमानः पथिकरने के
वस्तुन्यनेकान्यपि वस्तुपालः | तेभ्यः प्रभूतानि पथि प्रयच्छ
नाहं करोति स्म न कुप्यति स्म ॥। १५ पुरश्व पृष्ठेऽपि च पार्श्वयोथ
परिस्फुरन्तः खरदेतिहस्ताः ।
यात्राजनं वर्तमान तस्य शम्ब
दश्वादिरूढाः सुभटा ररक्षुः ॥ १८ समुद्धृतैर्जीर्णजिनेन्द्रहर्म्यं
नवैः सरोभिश्व सरोजरस्यैः । प्रस्थानमार्गः सचिवस्य सोऽभूदजानतामप्युपलक्षणीयः ॥ १९ यावन्ति विम्बानि जिनेश्वराणां
श्वेताम्वराणां च कदम्बकानि ।
जैन साहित्य संशोधक
मार्गेषु ते मुपिताश्रितार्तिः
पूजां स निर्वर्त्य ततः प्रतस्थे ॥ २०
स पंचवैनिर्विषयप्रपञ्च-प्रयाणकैः प्रीणित भव्यलोकः । धराधरं धर्मधुरंधरधी
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शत्रुंजयं शत्रुजयी जगाम ॥ २१.
[भाग १
- कीर्तिकौमुदी, सर्ग ९ ।
इन श्लोकोंका भावार्थ यह है कि शरत्काल के आने पर मंत्री वस्तुपालने तीर्थयात्रा के लिये तैयारी की । उसके साथ गांवके अन्यान्य लोक भी भत्ता, वाहन, जलादिके वर्तन इत्यादि मार्गमें आवश्यक ऐसी सब चीजे ले ले कर तैयार हुए। मंश्रीने दूर दूर देशों के आवकों को भी संघ आनेके लिये आदर पूर्वक आमंत्रण किया था इससे वे भी सब लोक आ पहुंचे। इस प्रकार सब लोगोंके तैयार हो जाने पर, अपने कुटुंबी, सगे सम्बन्धी, स्नेही इत्यादि सब जनोंके साथ, राजाकी आशापूर्वक, मंत्रीने शुभ मुहूर्त में प्रयाण किया। यात्रियोंमैं कोई रथोंपर कोई घोडोंपर, कोई ऊंटोंपर, कोई बैलॉपर, इस तरह जुदा जुदा वाहनों पर स वार होकर चलते थे, पर उन सबका भार मंत्री के शिरपर था। साथ चलनेवाले यात्रियोंमेंसे जिसके पास वाहन नहीं था उसको वाहन देकर, जिसके पास धन नहीं था उसको धन देकर और जिसके पास वस्त्र नहीं था उसे वस्त्र देकर मंत्रीने उस समय साक्षात् कल्पवृक्ष के समान आचरण किया था। संघ में सब मनुष्योंके भोजन कर लेनेपर मं. त्री भोजन करता था, सबके सोजाने बाद सोता था और सबके ऊठने के पहले ऊठता था - इस प्रकार संघकी संपूर्ण प्रतिपालना करता था । यात्रियोंको हमेशा उत्तम प्रकारका भोजन कराया जाता था, मीठा पानी पिलाया जाता था और दूध-दहीं आदि गोरस खिलाया जाता था। इस कारण वह वि. पम मार्गी मुसाफरी भी लोगोंको उद्यानलीलाके जैसी आनंददायक हो गई थी। जिन जिन गांवोनगरों में वह संघ पहुंचता था वे सब गांव-नगर वहां के निवासियोंकी ओरसे ध्वजा-तोरणादिले खूब सजाये जाते थे और वहांके अधिकारी वगैरह सब जन आदरपूर्वक उस संघकी पेशवाई में आते थे । स्थान स्थान में अनेक याचक जन आकर मंत्रीके पास अनेक प्रकारकी याचना करते थे और वह सबको यथायोग्य दान देकर संतुष्ट करता थापरंतु इस विषय में न कभी वह अहंकार ही प्र