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अंक २] साहित्य समालोचन
१०१ संप्रदायांना सूत्रपाठमां कटलोक पाठ-भेद अवश्य आ परिशिष्टात्मक सूबोनी संख्या १३० जेटली रहेलो छ, परंतु तेथी तेनी पूज्यतामां कोई पण छ भने ए मूत्रोमा घणा भांग खगोल भने भगोप्रकारनी भेद नधी. ए सत्र पर बन्ने संप्रदायांना लना विषयनीज पूर्ति करवामां आवी जे. जैन समर्थ पूर्वाचापि भाग्य टीका आदि अनेक व्या- मान्यता प्रमाणेना खगोल अने भगोल- वर्णन केटख्यानो करेला छ अने तेनो सर्वत्र प्रचार पण छ. लाक सूत्रनन्या सिवाय मुख्य करीने क्षेत्रसमास पज सूचना परिशिष्टरूपे लमालांचित पुस्तकनी अन संग्रहणी नामना प्रकरण ग्रंथोमा विस्तृतरीते रचना करवामां आवी छ. वास्तविकमां, सत्यार्थ. वर्णवामां आवलु छे.एग्रंथो वधारे विस्तृत होवाथी सूचनी रचनामां एवी कोई ग्यास न्यूनता नथी के संक्षेपमां तनुं ज्ञान करावधामाटे मा परिशिष्टनी जेथी तेनी पूर्ति करवा माटे परिशिष्ट अनावधानी रचना लागरानंदसरिए करी छे, एम भाषांतरकार आवश्यकता प्रतीत थाय. अने कदाच तेवी आव- जणाचे छ. परिशिष्टकार आचार्य, आविषयक जैन श्यकता जणाय ती पण ने कार्य पूर्ण अनुरूप तो साहित्यना शब्द-शरीरना समर्थ माता के एमा चीजा उमास्वातीर्थी व थई शके. बीजाए तेवी संशय नथी.ए विषयमा तेमना जेटलं सूक्ष्म ज्ञान प्रयत्न करचा ते अमारा लघुमत प्रमाणे तो एक प्र- भाग्यज बीजा कोई मुनि घराबता हशे. परंतु कार अनधिकारचेष्टा जर्बुज गणाय. पूर्वना महान् तेमनी आ प्रस्तुत कृति अमने तो अनुपयुक्त अने महान् आचार्याप केरलाक शास्त्रांनी प्रति मार्ट एवा असंबद्ध जैवी लागेछ कारण के एक तो या परिशिकैटलाफ प्रयत्नो कर्या छपरा परंतु ते पार्तिक के मां आपला लवीनी रचनामां कोई पण क्रम गोडभाग्यना नपमा छे, मूत्रना नपमा तो नहिं ज. अस्तु. बवामां मान्यो नी, अने बीजं सूत्रोनी संकलना
मूल तत्वार्थशास्त्रनी नत्र-संन्या श्वेताम्बरोना पण लियार्थ मरेली छे. जो भावा प्रकारना परिपाठ प्रमाणे ३४४ ले अनं दिगम्बरोना पाट प्रमाणे शिष्टनी तेमने खास आवश्यकता ज जगाई हती ३५७ छे. जो के आम संन्यानी दृष्टिए जोता बन्ने तो जाते नवीन सूत्रकार अवानी आकांक्षा करतां संप्रदायांना पाठमा मात्र १३ ज सत्रानी फेर जणाय जूना प्रन्योमांधी नेवां सूत्रो घंटी काही संग्रहकार छेपरंतु वास्तविकमां तेम नयी कारण के श्वेताम्बरी- थवानी इच्छा वधारे प्रशंसनीय गणाई होत. य सूत्रपाठमांना केटलांप सूत्री दिगम्बरीय सूत्रः तन्वाथ सूत्रकारनी ज कृतिम मनाता जंबुद्धीपसपाठमां नथी अन तेबीज रीत दिगम्बरीय सूत्रपाठ मास नामना ग्रंथमांधी आ परिशिष्ट पूर्णते संग्रही ना केटलांए सूत्री श्वेताम्बरयि मृत्र पाटमां नथी. शकायतम . तमज दिगम्बर संग्रदायना सुप्रश्रीजा अध्यायमा ज्यां जंबुद्धीपतुं भौगोलिक वर्णन सिद्ध ग्रंथरत्न तत्त्वार्थराजवार्तिकमां आ जातनां थावलं छत्यांएक साथ श्यताम्बराय पाठ करत, एकथी एक उत्तम अन यत्युपयांगी दिगम्बरीय पाटमा २०-२१. सूत्रो सर्वथा पधारे भरेला छे, तेमाथी पण जो आ विपयनां चार्तिको छे. सर्वथा यधार एटला माटे के ते सूत्रोमां आपलं उदत करवां होय तो धणी सारी रीते करीशकाय घर्णन श्वेताम्बरीय पाटमां बिल्कुल नथी. श्वेताम्ब. तेम छे. प्रस्तुत परिशिष्टमाए पण केटलांक सूत्रों रीय सुन्न पाटना समर्थ टीकाकार आचार्य हरिभद्रे तादिगम्बरीय सूत्रपाठमांधीज-शब्दो उलट पालट दिगम्बरीय पाठना ए आधिक्य माटे टीका पण करीन जमनां तेम-लीघेला अमारा जोशमा आत्रे फरी छ भने जगान्यु छ के आ सूत्रो पाछी छ. तेथी तेम न करता तना तेज शब्दोमा जोते कोईण बनावी लीधा अने सूत्रकारना संक्षेप क- सूना राख्यां होत तो, आमां जे क्लिष्टार्थता नजरे रणात्मक अभिप्रायनी दृष्टिए तनुं अस्तित्व अयुक्त पडे न पडत. छे. याश्चर्य छे के ले जातनां सूत्राने हरिभद्रसुरिसूत्रकारनी अपेक्षाए, अयुक्त जणाचे तेज सातनां मुनि मानसागरजीनु करेलु भापान्तर बहुज नवां सूत्रो रची तत्त्वार्थना परिशिष्टम्पे सागरानंद. साधारण प्रतिनु छ अने केटलेक टेकाणे तो उलटो सरि प्रकट कराव छ.
अर्थ-विपर्यास करावं तेत्रो छ. उदाहरण तरीके