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अंक 1
डॉ. हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोनी प्रस्तावना आचारांग अने सूत्रकृतांग सूचना प्रथम स्कंधोने, . उपरथी एम सिद्ध थतुं होय तेम जणाय छ के सिद्धान्तना सौथी प्राचीन भाग तरीके मानुं . आ प्रकारना अर्वाचीन ग्रंथोनी रचनाना समय अने मारा आ अनुमानना प्रमाण तरीके हुँ आ बे पूर्वे जैनोनी साहित्य विषयक अभिरुचि निश्चित ग्रंथोनी (स्कंधोनी) शली यतावीश. सूमहतांग सू- थपली हती. आ सघळी बाबतो उपरथी आपणे अनु आखं प्रथम अध्ययन, चैतालीय वृत्तमां रचा- एवो निर्णय करी शकीए छीए के, जैनोना सौथी एलुं छे. आ वृत्त धम्मपद आदि दक्षिणना अन्य प्राचीन साहित्यनी समयमर्यादा पाली साहित्य चौद्ध ग्रंथोमां पण चपराएलो जोवामां आवे छे. अने ललितविस्तराए उभयना रचनाकालनी बच्चे परंतु पालीसूत्रोनां पयोमा प्रयोजाएलो चैतालीय निश्चित थाय छे. पाली पिटकोनुं पुस्तकाधिरोहण वृत्त, त, सूत्रकृतांग सूचना पयोमा मळी आवता (अर्थात् पुस्तकरूपे लखाण) वहगामणि जेणे ई. चैतालीय वृत्तनी हटिए जोतां, वृत्तना विकास क- स. पूर्वे ८८ वर्षे पोतार्नु राज्यशासन शरू कर्य हा मना प्राचीन स्वरूपनो द्योतक छे. या पावतमा हुँ तेना समयमा थयुं हतु. जो के मा लमयथी कैटलीअहीं पधारे न लखतां. थोडाज समयमा जर्मन फशदीमो पूर्वे पण ते पिटको अस्तित्व तो धरावतां ओरियन्टल सोसाइटीना जर्नलमा, 'वेदनी पछीना हतां ज. आ विपयनी चर्चा करतां छेक्टेप्रो.मेक्सकालना छंदो' ('Post-Vedic Jetres ') ए मूलरे नीचे प्रमाणेना विचारो जणाव्या छ 'ते. मथाला नीचे प्रकट थनारा मारा लेखमां विस्तृतरी- टला माटे,मारा विचार प्रमाणे, अत्यारे तो आपणे ते चर्चवा इच्छु छ. संस्कृत साहित्यना सामान्य घौद्ध सूत्रोना अर्वाचीनमां अर्वाचीन रचना-समय पैतालीय [वृत्तना ] श्लोको, के जेमांना केरलाक तरीके ई. स. पूर्व ३७७ मा वर्णने, निर्णीत फरी, ललितविस्तरामा पण मळी आवे छे, तेनी साथे संतोप मानवो जोईए,-के जे समये द्वितीय संगिमुकाबलो करी जोतां, सूत्रकृतांगनो वैतालीय वृत्त ति मळी हती.' त्यार वाद पण ए पाली सूत्रोमां तेथी वधारे प्राचीन रूपनो जणाय छे. घळी ए उमेरा तथा फेरफारो थया होय ए असंभावित बाबत पण अहीं लक्ष्यमालेचा लायक छे के प्राची- नथी. परंतु आपणी प्रस्तुत दलील धम्मपदना कोई न पालीसाहित्यमा आर्यावृत्तमां गुंथेलां पयो मळी एकाद फकराके भागने आधारे उभी थपली न होई, आवतां नयी धम्मपदमां तो ते सर्वथा नथी ज. तेमा तथा अन्य पालीग्रंथोमां मळी आवता वि. तेम अन्य बौद्ध ग्रंथोमां पण तेवां पद्यो मारा जोधा- विध छंदो उपरथी तारवी कढाता छंदःशास्त्रना मां मान्यां नथी. परंतु, आवारांग अने सूत्रकृतांग नियमोना पाया उपर स्थापित करयामां आवे. सूत्रोमां तो एक एक संपूर्ण अध्ययन आर्यावृत्तमां ली छे. तेथी, ए ग्रंथोमां दाखल थएला उमेरा या लखेळ मळी आवे छे. आ आर्यावृत्त,, सामान्य फेरफारोथी, अमारा ए निर्णयने-के समस्त जैन [रीते ओळखाता] आर्या वृत्तथी स्पष्ट रीतेप्राचीन सिद्धान्त साहित्य ई.स. पूर्वे चोथी शताब्दि वाद तथा तेनो जनक स्वरूप देखाय छे. सामान्य आ- रचाएल छे,-तेने कोई पण प्रकारनी हानि पहोंची यावृत्त ते, सिद्धान्तना वधारे अर्वाचीन भागोमां, शफती नथी. तथा प्राकृत अने संस्कृत भाषाना ब्राह्मण आपणे उपर जोई गया के जैनसिद्धान्तनो सौथी ग्रंथोमां अने ललितविस्तरादि जेवा उत्तरना बौद्ध प्राचीन विभाग ललितविस्तारानी गाथाओथी ग्रंथोमां पण नजरे पडे के प्राचीन जैनग्रंथोमां अधिक जूनो छे. आ ग्रंथ (ललितविस्तर) ना प्रयोजाएलो त्रिष्टुभ् छंद पण पाली ग्रंथोमां मळी विपयमा एवं कहेवाय छे के तेनो ई. स. ६५ मां आवता ते छंद करतां अर्वाचीन रूपनो अने ललि- चीनी भाषामा अनुवाद थयो हतो. आ उपरथी तविस्तरामांना करतां प्राचीनरूपनो छे. अंते, ल- चर्तमान जैन साहित्यनी उत्पत्तिनो समय ई.स. लितविस्तरादि ग्रंथोमा जोवामां आवता आलिवा- - यना वीजा अनेक प्रकारना कृत्रिम वृत्ती-जेसांनो १ Sacred Books of the East, Vol. x, एक पण वृत्त जैनसिद्धान्तमा जडी आवतो नथी- p. XXXII.