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जैन साहित्य संशोधक
छे, ते जैन पुस्तकारोहणना समयथी. घणी शदीओ पहेलां रचापला हता, तो ते द्वारा आपणे जैनोना (अंतिम) तीर्थकर अने प्राचीनमां प्राचीन ग्रंथो ए ने वना गाळाने, जो के सर्वथा दूर नहीं करी शकीर तो पण घणे अंशे अल्प करी आपना समर्थ थई शक़ीशुं .. -
सर्वसंमत संप्रदायनी अनुसार जैन सिद्धान्त वलमिनी सभामां देवर्धिगणीना अध्यक्षपणा नीचे, निश्चित करवामां आव्यो हतो. आ बनाव वीर निर्वाण पछी ' ८० ( अथवा ९९३) मा वर्षे पटले. इ० स० ४५४ ( अगर ४६७ ) मां' बन्यो हतो, एम कल्पसूत्र [. १४८.] उपरथी जणाय छे. संप्रदाय एवो छे.के ज्यारे देवर्धिगणी सिद्धान्तने नष्ट, थई जवाना जो खममां जोयो त्यारे तेणे. तेने पुस्तकाधिरूढ करा. व्यो. तेनी पहेलां, आचार्यो क्षुल्लकोने सिद्धान्त शीखवती वखते लिखित ग्रंथोनों बिलकुल उपयोग करता न होता. देवर्धिगणीना समय पछी ज लिखित पुस्तकोनो उपयोग शरू थयो. आ हकीकत-तद्दन साची छे. कारण के प्राचीन समयमा पुस्तकोनो बिलकुल उपयोग थतो न इतो एम आपणने बीजी हकीकत उपरथी पण जणाई आवे छे. ब्राह्मणो तो लिखित पुस्तक करतां पोतानी स्मरणशक्ति - उपर ज विशेष आधार राखता हता. अने निःसंदेहरीते जैनोए तेमज बौद्धोए तेमनी अ आ प्रथानुं, अनुकरण कर्यु हतुं. परंतु अत्यारे जैनयतिभो -पोताना शिष्योने शास्त्र शीखवती वखते लिखित पुस्तकोनी उपयोग अवश्य करे छे.. आ उपरथी आपणे मानवुं पड़े छे के शिक्षण पद्धतिमां थपलो आ फेरफार देवर्धिगणीने आभारी छे, एम बताव नारो वृद्ध संप्रदाय तद्दन साचो छे. कारण के आ atra बहु महत्त्व होवाथी भुली शकाय तेम थी. प्रत्येक आचार्यने अथवा तो छेवढे प्रत्येक उपने पवित्र आगमोनी नकलो पूरी पाडवा माटे देवर्षिगणीने सिद्धान्तना पुस्तकोनी खरेखर
१. संभवित न लागतुं होवा छतां ए शक्य. छे. के सिद्धा न्तनिर्णयनां समय आ करतां ६० वर्ष पछी एटले .. ई. स. ५१४ ( अथवा ५२७ ) होवो जोईए. जुओ वल्पसूत्र, उपोदूधात पृ. १७.
[भाग १
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घणी मोटी संख्या तैयार कराववी पडी हशे. हवे देवर्धिगणीए सिद्धान्तने पुस्तकारूढ कराव्यो एवो जे लेखी संप्रदाय मळे छे तेनो भावार्थ प्रायः उपर प्रमाणेनोज होवो जोईप कारण के ए तो भाग्ये ज मानी शकाय तेवु छे के तेनी पहेलां जैन साधुभो जे कांई कंठस्थ करता हशे तेने सर्वथा नज लखता होय. ब्राह्मणो वेदनुं अध्ययन कराव वामां लिखित पुस्तकोनो उपयोग करता नथी छतां पण तेमनी पासे तेवां पुस्तको तो जरूर जोवामां आवे छे. तेओ ( ब्राह्मणो ) आ पुस्तकोने खानगी उपयोग माटे पटले के गुरुनी स्मरणशक्तिने मदत करवा माटे राखे छे. मारुं दृढ मानवु छे के जैनो पण आज प्रद्धतिने अनुसरता हशे बल्के तेभो ब्राह्मणोथी पण वधारे आ पद्धतिनुं अनुसरण कर ता हरो, केमके ब्राह्मणोनी माफक तेओनुं एवं मानधुं तो हतुं ज नहीं के लिखित पुस्तको अविश्वस्य छे. तेओ तो मात्र जे एक प्रचलित रिवाज हतो, के आगमनुं ज्ञान. मौखिकरीते ज एक पेढीद्वारा बीजी पेढीने अपाधुं जोईए, तेने लईने जलि - खित ग्रंथोनो विशेष उपयोग करवामां संकोचाता हता. हुं अहीं एम प्रतिपादन करवा इच्छतो नथी के जैनोना पवित्र आगमो असलथी ज छुटा छवाया पण आयी रीते, पुस्तकोमां लखेला ज हता. अने एमन कहेवानुं खास कारण बीजं काई नहीं, परंतु बौद्ध भिक्षुओ पासे लिखित पुस्तको न हतां एम जे कहेवाय छे तेज छे. बौद्ध भिक्षुओ पासे आवां पुस्तको नहतां तेना प्रमाण तरीके एवं कहेवामां आवे छे के तेमनां सूत्रोमां, ज्यारे प्रत्येक जंगमवस्तु थी लईने नानामां नानी अने क्षुद्रमां क्षुद्र एवी घरंमां चापरवा लायक वासणो जेवी चीजोनो पण कोई ने कोई रीतिए उल्लेख थपलो अवश्य जडे छे" त्यारे लिखित पुस्तकनो क्या. ए. पण बिलकुल उल्लेख थएलो जोवामां आवतो नथी. आ कथन, मारा मानवा प्रमाणे, ज्यां सुधी जैन यतिओ, भ्रमणशील पडे तेवुं छे. परंतु ज्यारथी तेओ पोताना ताबाना जीवन गुजारता हता त्यां सुधी तेमने पण लागु
१. Sacred Books of the East, Vol, XIII Introduction, p, XXXIII,