________________
अंक २ ]
ए.
ह्मण संप्रदायो आत्माने सर्व विश्वव्यापी माने छेः चळी, जेवी राने बौद्धोतो असंख्य उपविभागात्मक पञ्चस्कन्धवाद ज़ैनीना अध्यात्मशास्त्रमां बिलकुल जणातो नथी, तेवी राने जैनोनो अतिविस्तृत चेतनवाद ( IIylozoistic theory ) जेवा सिद्धान्त पण बौद्धांना तत्त्वज्ञानमां दृष्टिगोचर श्रतो नधी. जैनोनो ए सिद्धान्त तेमना संपूर्ण तत्त्वज्ञान अने आचारशास्त्रमां आंतप्रोत धरलो जोवामां आव : अने ए सिद्धान्तानुसार प्राणी अन वनस्पति उपरान्त पृथ्वी, जल, तेज अने वायु जवां तत्त्वानां सूक्ष्ममां सूक्ष्म अणुओ सुद्धांने चेतनायुक्त मानवामां आवे छ. भारतवर्षना सघळा तत्त्वनानिभए सर्वक्षता अधीनी ज्ञाननी जदी जदी तरतमताओ-पायरीओ ने एक अति महत्त्वना विषय मान्यो छे. तदनुसार जैनो पण आ विषयमा पोतानी एक स्वतंत्र मत धरावे छे. अने विषयनी तेमनी परिभावा पण अन बौद्धोधी तद्दन जुदाज प्रकारनी छे ते ओए जानना नीचे प्रमाणना पांच प्रकारो मानेला छः -- ( १ ) मति - सम्यग अवबोध (२) श्रुत-मति वाद थप स्पष्ट मानः (३) अवधि एक जातनुं अतीन्द्रिय ज्ञान; (४) मनः पर्यीय-परकीय विचारोनुं विशद ज्ञान; (५) केवल सर्वोत्कृष्ट प्रकारनुं अथवा संपूर्ण ज्ञान. जैनांनो आ एक मौलिक आ ध्यात्मिक सिद्धान्त छे, अने ए सिद्धान्त तीर्थक. रोनां चरित्र लखती खते लेखकांना मगजमां हमेशां प्रधान पणे रमी रहे छे. आ प्रकारनो सिबान्त ग्रन्थमा बीलकुल जोघामां आवती नथी ए सिवाय व संप्रदायांना मुख्य सिद्धान्तो वधे नीजा पण पवा णा भेदी बतावी शकाय तेम है. परंतु ते वधानं वर्णन वांचतां कदाच वाचकने कंटाळो आव वा भयथी अमे आटलेथी ज विरमीए छीए.
डॉ. हर्मन जेकोयीनी जैन सूत्रोनी प्रस्तावनां
जैनोना जे केटलाक सिद्धान्तो बौद्ध सिद्धान्तो साथै मळता आवे छे ने तो ब्राह्मणधर्ममां पण समान है - उदाहरण तरीके पुनर्जन्मनो सिद्धान्त अर्थात् मरण पछी फरीधी जन्म धारण करवो तेः कर्मनो सिद्धान्त- अर्थात् पूर्वकृत कर्मोना धर्मा धर्मरूपी परिणामो आ भत्रमां अगर आगामी
५
८७
जन्ममां जीवात्माने भोगववां पडे छे ते; तेमज संपूर्ण ज्ञान भने उत्तमचारित्र - के जेथी मनुष्यं भवचक्रपरिभ्रमणनो अन्त लावी शके छे तेःइत्यादि सिद्धान्तो लई शकीप. बीजो पण जैनो अने बौद्धोनो एक समान विचार छ, जेनी अनुसार एम मानवामां आवे छे के अनादि काळथी तीर्थकरो अने बुद्धो एकज प्रकारना सिद्धान्तो प्ररुपता आल्या छे तथा नए थता धर्मेन पुनर्जीवित करता आया है. ए विचार पण ब्राह्मणांना विष्णुना अवतारोवाळा विचार साथै मळतो आवे छे. परंतु, ते उपरांत, जैन अने बौद्ध ए यन्ने धर्मना एक अत्यावश्यक प्रयोजनरूपे पण था विचारनी उत्पत्ति थपली समजाय ले. कारण पछे के बुद्ध अगर महावीरे जे कांई प्रतिपादन कर्यु हतं तेने तंमना अनुयायिओ सत्य - एकमात्र सत्य मानता हता. हवे आ सत्यने पण ब्राह्मणोना वेदनी माफक अनादि काळधीज अस्तित्व धरावतुं मानवं जोईए. कारण के जो एम न मानवामां आवे तो प्रइन थशे के शुंभ सत्य तीर्थकरोना अवतारनी पूर्वे व्यतीत थई गएला अनंत काळ सुधी मात्र अज्ञातज रहयुं हतुं ? आ प्रश्नना उत्तरमां दरेक श्रद्धाळु जैन अगर बौद्ध पमज कहशे के नहीं एम बनधुं तो तद्दन अशक्य छे. ते तो एमज कहेशे के आ सत्यधर्मनी उपदेश भिन्न भिन्न काळमां उत्पन्न "थपला एवो असंख्य तीर्थकरो तथा वृद्धों द्वारा हमेशां अपातो आयो छे अने भविष्यमां पण तेवी ज रति अपातो रहेश. आ प्रमाणे भूतकालमा अनेक धर्मप्रवर्तको थई गयानो आपने धर्मानी विचार-सिद्धान्त न्यायशास्त्रानुसार एक अत्यावश्यक प्रयोजनमपे छे.
चळी जनाना आ विचार सिद्धान्तने प्रमाणश न्य ठरावी शकाय तेम पण नथी. कारण के बौद्ध ग्रंथोमां कोई पण स्थळे निर्ग्रथीने एक नवीन उत्पन्न थरला संप्रदाय तरीके अथवा तो नातपुत्तने तेना संस्थापक तरीके वर्णवामां आव्या नथी. तेथी युद्धंना समयमां निर्ग्रथोनो संप्रदाय, ते प्रायः एक प्राचीन संप्रदायज मनातो हतो, एम सिद्ध थाय छ. तेमज नातपुप्त ते, वं करीने पार्श्व नामे तेघीशमा तीर्थकर द्वारा स्थापित थरला जैन धर्मना