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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह
सोलह कारणका अर्थ जल फल आठों द्रव्य चढ़ाय, 'द्यानत' वरत करों मन लाय। परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो ॥ दरश विशुद्धि भावना भाय, सोलह तीर्थंकर पददाय । परम गुरु हो,
जय जय नाथ परम गुरु हो ॥१॥ ओ हो दर्शनविशुद्धि, विनयसम्पन्नता, शीलवतप्वनतीचार, अभीक्ष्णज्ञानोपयोग, संवेग. शक्तितस्त्याग, शक्तितस्तप, साधुसमाधि, वैयावृत्यकरण. अर्हतभक्ति श्राचायभक्ति, बहुश्रुतभक्ति, प्रबचनभक्ति. आवश्यकापरिहानि, मागप्रभावना, प्रवचनवात्सल्य षोडशकारणेभ्यो अनयपदप्राप्तये अर्घ निर्वपार्माति स्वाहा ॥५॥
पंचमेरुका अर्थ आठ दरखमय अर्घ बनाय, द्यानत पूजों श्री जिनराय ।