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________________ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह ( इत्याशीर्वादः । पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् ) णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरीयाणं । णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्यसाहूणं । तावकायं पावकम्मं दुचरियं वोस्मरामि । ___ ( यहां पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये ) अथ सिद्धपूजा ऊर्ध्वाधोरयुतं सविंदु सपरं ब्रह्मस्वरावेष्टितं । वर्गापूरितदिग्गतांबुजदलं तत्संधितत्त्वान्वितं ॥ अंतःपत्रतटेष्वनाहतयुतं ह्रींकार-संवेष्टितं । देवं ध्यायति यः स मुनिसुभगो वैरीभकंठीरवः॥ ओं ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपत ! सिद्धपरमेष्ठिन ! अत्र अवतर अवतर संवौषट ! ओं ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपत ! सिद्धपरमेष्ठिन ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं । ओं ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपते ! सिद्धपरमेष्ठिन ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वपट सन्निधिकरणम । निरस्तकर्मसंबंध, सूक्ष्म नित्यं निरामयम् । वन्देऽहं परमात्मानममूमनुपद्रवम् ॥१॥ (यहां सिद्धयंत्रकी स्थापना करना) जिनको बिना द्रव्य चढ़ाये भाव पूजा करना हो. वे आगे भावाष्टक छपा है, उसको बोलकर करें । अष्टद्रव्यसे पूजा करने वालों को भावपूजा का अष्टक नहीं बोलना चाहिये ।
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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