SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह ओं ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थङ्करभ्यो भवतापविनाशनाय चंदनं० ( इसके स्थानमें यदि इच्छा हो. तो बड़ा मंत्र पढ़े ) यह संसार अपार महासागर जिनस्वामी। तातें तारे बड़ी भकि-नौका जगनामी ॥ तंदुल अमल सुगंधसों (हो) पूजों तुम गुणसार। सीमंधर जिन आदि दे वीस विदेह मँझार ॥ श्री जिनराज हो भव, तारणतरण जहाज ॥३॥ ओं ह्रीं विद्यमानविंशनितीर्थकरभ्योऽक्षयपदप्राप्तये अक्षतान नि० भविक-सरोज-विकास, निंद्यतमहर रविसे हो । यति श्रावक आचार, कथनको, तुमही वड़े हो ॥ फूलसुवास अनेकसों (हो) पूजों मदन प्रहार । सीमंधर जिन आदि दे, वीस विदेह मँझार ॥ श्री जिनराज हो भव, तारणतरण जहाज ॥४॥ ओं ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थकरभ्य: कामवाणविध्वंसनाय पुष्पं० काम-नाग विषधाम, नाशको गरुड़ कहे हो। क्षुधा महादवज्वाल, तासको मेघ लहे हो । नेवज बहुत मिष्टसों (हो) पूजों भूखविडार।
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy