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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। धर्मामृत उर जलधिसों, ज्ञानभानु तुम रूप। तुमरे चरणसरोजको, नावत तिहुंजग भूप ॥५॥ में बंदों जिनदेवको, कर अति निर्मल भाव । कर्मबंधके छेदने, और न कळू उपाव ॥६॥ भविजनकों भवकूपते, तुमही काढनहार । दीनदयाल अनाथपति, आतम गुणभंडार ॥७॥ चिदानंद निर्मल कियो, धोय कर्मरज मैल । सरल करी या जगतमें भविजनको शिवगैल ॥८॥ तुम पदपंकज पूजतें, विघ्न रोग टर जाय। शत्रु मित्रताको धरै, विष निरविषता थाय ॥६॥ चक्रीखगधरइंद्रपद, मिले आपते आप। अनुक्रमकर शिवपद लहैं,नेमसकल हनि पाप १०॥ तुमविन में व्याकुल भयो, जैसे जलबिन मीन। जन्मजरा मेरी हरो, करो मोहि स्वाधीन ॥११॥ पतित बहुत पावन किये, गिनती कौन करेव । अंजनसे तारे प्रभू, जय जय जय जिनदेव ॥१२॥