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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह।
चंदों वीरजिनेंद्र इंद्रशतवंद्य वंद्य मम । जन्ममरणभय हगे कंगे अघशांति शांतिमय, मैं अघकोश मुपोष दोपको दोप विनाशय ॥२५।।
छठा कायोत्सर्ग कर्म । कायोत्सर्ग विधान कर अंतिम मुखदाई. कायत्यजनमय होय काय मवको दुखदाई । पूरब दक्षिण नमं दिशा पश्चिम उत्तर में, जिनगृह वंदन कर हम भवपापतिमिर में ॥२६॥ शिरोनती में कर नमं मम्नक कर धम्कि,
आवर्तादिक क्रिया कम मन वच मद हरिक । तीनलोक मिनभवनमाहि जिन हैं जु अकृत्रिम, कृत्रिम हैं द्वय अद्धं द्वाप माहीं वन्दों जिम ॥२७।। आठकोडि परि छप्पन लाग्य जु सहम यत्यारणं, च्यारि शतक पर अमी एक जिनमंदिर जाणं । व्यंतर ज्योतिषमाहि मंग्यहिते जिनमंदिर, ते मत्र वंदन कर हरहु मम पाप संघकर ॥२८॥ मामायिकमम नाहि और कोर बमिटायक, मामायिक मम नाहि और कोउ मंत्रीदायक । श्रावक अणव्रत ग्रादि अन्तमप्तम गुग्गथानक, यह आवश्यक किये हाय निश्चय दुग्वहानक ।।२०।।