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________________ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। २४५ निष्पन्न शालिवनशालिनि जीवलोके. कार्य कियजलधरैर्जलभारनम्रः ॥१६॥ ओं ह्रीं चन्द्र सूर्योदयास्त रजनी दिवम रहित परम कंवलोदय मदादीप्ति विराजमानाय श्री आदि दवाय आदि परमेश्वराय अर्घ ।। १६ ।। ज्ञानं यथा त्वयि विभाति कृतावकाशं, नैवं तथा हरिहरादिषु नायकेषु । तेजःस्फुरन्मणिषु याति यथा महत्त्वं, नैवं तु काचशकले किरणाकुलेपि ॥ २०॥ ओं ह्रीं हरि हरादि ज्ञानरहिताय सर्वज्ञ परम ज्यानि कंवलज्ञान सहिताय श्री आदि परमेश्वराय अर्घ ।। २० ॥ मन्ये वरं हरिहरादय एव दृष्टा, दृष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोषमेति । किं वीक्षितेन भवता भुवि येन नान्यः, कश्चिन्मनो हरति नाथ भवांतरेपि ॥२१॥ ओ ह्रीं त्रिभुवन मनमोहन जिनंद्रम्प अन्य इप्टान्त गहित परम बोध मंडिताय श्री आदि जिनाय अर्थ ।। २१ ।। स्त्रीणां शतानि शतशो जनयंति पुत्रान, नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रमूना ।
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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