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________________ २४४ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह | गम्यो न जातु मरुतां चलिताचलानां, दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ जगत्प्रकाशः ॥ १६ ॥ यहीं स्नेह वातादि विघ्नरहिताय त्रैलोक्य परस केवलदीपकाय श्रीप्रथमजिनेंद्राय अर्थ ।। १६ ।। नास्तं कदाचिदुपयासि न राहुगम्यः, स्पष्टी करोषि सहसा युगपज्जगंति । नांभोधरोदरनिरुद्धमहाप्रभावः, सूर्यातिशायिमहिमासि मुनींद्र लोके ॥ १७ ॥ ह्रीं राहु चन्द्र पूजित कर्म प्रकृति क्षयति निरावरण ज्योतिरुप लोकद्वयावलोकी सदोदयादिपरमेश्वराय अर्थ ॥ १७ ॥ नित्योदयं दलितमोहमहांधकारं, गम्यं न राहु वदनस्य न वारिदानां । विभ्राजते तव मुखाब्जमनल्पकांति, विद्योतयज्जगदपूर्वशशांकविं ॥ १८ ॥ त्यो रूप और राहु करके हू ना से जाय एसे त्रिभुवन सर्वकला सहित विराजमानाय श्री आदि परमेश्वराय अर्ध ॥ १८ ॥ किं शर्वरीषु शशिनाहि विवस्वता वा, युष्मन्मुखेन्दुदलितेषु तमस्सु नाथ !
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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