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________________ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। २३१ दोहा। या विधि तीर्थ जिनेश के बंटू शिखर महान । और असंख्य मुनीश जै पहुंचे शिवपद थान । सिद्ध क्षेत्र जे और हैं भरतक्षेत्रके मांहि । और जे अतिशय क्षेत्र हैं कहे जिनागम मांहि ॥ तिनके नाम सु लेत ही पाप दूर हो जाय । ते सब पूजू अर्घ ले भव भवको सुग्वदाय ॥ ओं ह्रीं श्री भरत क्षेत्र सम्बन्धी सिद्धक्षेत्र और अतिशय क्षेत्रेभ्यो अर्घम् सोरठा। दीप अढ़ाई मांहि सिद्धक्षेत्र जे और हैं। पूजू अर्घ चढ़ाय भव भवके अघ नाश हैं ॥ अडिल्ल छंद। पूजू तीस चौवीस महासुख दाय जू । भूत भविष्यत वर्तमान गुण गाय जू ॥ कहे विदेह के वीस नमू सिरनाय जू । और अर्घ वनाय सु विघन पलाय जू ॥ ओं ह्रीं श्री तीस चौवीमी और भूत भविष्यन वर्तमान और विदेह क्षेत्रके वीस जिनेश्वर तिनके चरण कमलकी पूजा अर्घम
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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