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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह । २११ मुवरण भद्र आदि मुनि चार, पावागिग्विर शिखर मँझार। चेलना नदीतीर के पाम, मुक्ति गये बंदी नित ताम ॥१४॥ फलहोड़ी वडगाम अनूप, पश्चिम दिशा द्रोणगिरि रूप । गुरुदत्तादि मुनीसुर जहां, मुक्ति गये वदी नित तहां ॥१५॥ बाल मह वाल मुनि दोय, नागकुमार मिले त्रय होय । श्रीअष्टापद मुक्तिमँझार, ने बंदी नित सुरत सँभार ॥१६।। अचलापुर की दिश ईमान, तहां भेदगिरि नाम प्रधान । माढ़े तीन कोडि मुनिगय, तिनके चरण नमं चितलाय॥१७॥ वमस्थल वनके ढिग होय, पश्चिमदिशा कंथुगिरि मोय । कुलभूपण दिशभूषण नाम, तिनके चरणनि करूं प्रणाम १८॥ जसरथ राजाके सुन कहे देश कलिंग पांचमी लहे । कोटिशिला मुनि कोटि प्रमान, वंदन कर जोर जुगपान १९॥ समयमरण श्रीपाशवंजिनंद, गमिदागिरि नयनानंद । वग्दत्तादि पंच ऋषिगज, ने बंदी निन धरम जिहाज २०॥ मथुगपुर पवित्र उद्यान, जंवृम्बामाजी निर्वान । चम्म केवली पंचम काल, ने वदा नित दीन दयाल ॥२१॥ तीनलोकके तीरथ जहां, नित प्रति चंदन का तहां । मनवचकायमहित सिर नाय, वंदन कहि भविक गुणगाय २२ मंवत मतहमा इकताल, आश्विन मुदि दशमी मुविशाल । 'भैया' वंदन कहिं त्रिकाल, जय निर्वाणकांड ॥२३।। इति