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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह ।
कोटिशनं द्वादश चैव काट्यो लक्ष्यागयशीतिस्त्र्यधिकानि च । पंचाशदष्टौ च सहस्रसंग्व्यमेतदश्रु तं पंचपदं नमामि ॥१०॥ उदकचंदननंदुलपुष्पकश्चममदापन उप फलाना: । धवन मंगल गानर व कुलं जिनगृह जिनम्मद यज । १॥ ओ ही श्रीमद माम्वामि वर्गच नाय नच्चाथमाय महाम। इति नन्वाधिगम मानशास्त्रं समाप्रम ।
जिनवाणी स्तुति वार हिमाचल निकमी गुम गौतमक मृग्यकुगड ढग है, माह महाचल भंद चला जगकी जड़ता तप दर कंग है। ज्ञान पयोनिधि मांहि गन्ना यह भंग तरंगान मी उग है, नाशुधि शारद गंग नदी प्रति में अंजुग निज माग धग है।।१।। या जग मंदिग्में अनिवार अनान ग्रंधर च्या प्रति भाग, श्रीजिनकी धुनि दीपशिग्वा मम जी नहि हानि प्रकाशन हाग। तो किस भांति पदाग्य पानि कहां लहने रहने अविचार्ग, या विधि मत कह धान हैं धनि हैं जिन वन बड़े उपगाग ।।२।।