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श्री जन पूजा-पाठ मंग्रह। १७३ नयननसुखकारी, मृद्गुनधारी, उज्वल भारी, मोलधरें । शुभगंध सम्हाग, वसन निहाग, तुम तनधाग ज्ञान करे ।। तीर्थंकरकी धुनि गणधरने सुनि, अंग रचे चुनि, ज्ञानमई । मो जिनवरवानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवन मानी पूज्य भई।। ओं ह्रीं श्री जनमुखादभवमरम्वदिव्य वस्त्रं निवः जलचंदन अच्छत, फूल चरू चित. दीप धूप अति फल लावें । पूजाको ठानत, जो तुम जानत, मां नर द्यानत मुख पावें ।। तीर्थकरकी धुनि, गगगधग्न मनि, अंग रचे चुनि, ज्ञानमई। मो जिनवरवानी, शिवम ग्ब दानी, त्रिभुवन मानी पूज्य भई ।। श्रां ह्रीं श्रीजिनमुग्वादभवमरम्वादव्य अध्य निव ,
जयमाला मारठा। ओंकार धुनिसार, द्वादशांगवाणी विमल । नमों भकि उर धार, ज्ञान कर जड़ता हरे ॥ पहलो आचारांग वग्वानो । पद अष्टादश सहस प्रमाना ॥ दूजो सूत्रकृतं अभिलाषं । पद छत्तीस सहस गुम भापं ॥१॥ तीजो ठाना अंग सुजानं । सहस वियालिस पदसरधानं ॥