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________________ १७२ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। पकवान बनाया, बहुघृत लाया, मब विधि भाया, मिष्ट महा । पूजं थूति गाऊं, प्रीति बढ़ा ऊ, क्षुधा नशाऊं हर्षे लहा ॥ तीर्थकरकी धुनि, गणधग्ने सुनि, अंगरचे चुनि, ज्ञानमई । मो जिनवरवानी, शिवसुखदानी त्रिभुवन मानी पूज्य भई ॥ आं ह्रीं श्राजिनमुग्वादभवमरम्वतीदव्य नवेद्यं निर्वपार्माति० करि दीपक जोनं, तमच्य होतं, ज्योति उदोतं तुमहि चढे । तुम हो परकाशक, भग्मविनाशक हम घट भासक ज्ञान बढ़े। तीर्थकरकी धुनि, गणवरने मुनि अंग रचे चुनि ज्ञानमई । मो जिनवरवानी, शिवमुम्बदानी, त्रिभुवन मानी पूज्य भई।। ओ ह्रीं श्रीजिनमुम्ब दभवमरम्वतीदव्य दीपं निर्व शुभगंध दशोंकर, पावरमें धर, धूप मनोहर खेवत हैं । सब पाप जलावे, पुण्य कमात्र, दाम कहावं सेवत हैं ।। तीर्थकरको धुनि, गणधरने मुनि, अंग रचे चुनि, ज्ञानमई। सो जिनवग्वानी, शिवमुग्वदानी, त्रिभुवन मानी पूज्य भई ।। ओं ही श्रीजिनमुबंदभवमरस्वनादव्य धूपं निवपामा नि म्वाहा। बादाम छुहाग लांग सुपारी, श्रीफल भारी, ल्यावत हैं । मनवांछित दाता, मेट अमाता. तुम गुन माता ध्यावत हैं ।। तीर्थकरकी धुनि, गणधग्ने सुनि, अंग रचे चुनि, ज्ञानमई। सो जिनवरवानी. शिवसुखदानी, त्रिभुवन मानी पूज्य भई ।। ओं ह्रीं श्रीजिनमुखाद्भवसरस्वतीदेव्य फलं निर्व०
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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