________________
१७० श्री जैन पृजा-पाठ मंग्रह तुम प्रभु करुणासागर, तुम ही अशरण शरण जगत स्वामी। दुखित मोहरिपुसे मैं, याने करता पुकार जिन नामी ॥४॥ एक गांवपनि भी जब, करुणा करता प्रवल दुखित जनपर । तब हे त्रिभुवनपति तुम करुणा क्या नहीं करोगे फिर मुझपर५।। विनती यही हमार्ग, मेटो मंमार भ्रमण भयकारी । दःखी भयो मैं भागे, तात करता पुकार बहुभारी ॥६॥ करुणामृतकर शीतल, भवतप-हारी चरण कमल तेरे । रहें हृदयमें मेरे जब तक हैं कम मुझे जग घेरे ॥७॥ पद्मनंदि गुण-बंदित, भगवन ! संसार शरण-उपकारी । अंतिम विनय हमारी, करुणाकर करहु भव जलधि पारी॥८॥
-
शास्त्र-पूजा विधान शास्त्रीको उम्चामन पर विराजमान करके पर्यषण पर्व में निम्न प्रकार पृजा करनी चाहिय ।
__ मरम्वती पूजा जनम जरा मृतु छय करै, हरे कुनय जड़रीति । भवसागरसों ले तिरै, पूजे जिनवचप्रीति ॥१॥ ओं ह्रीं श्रीजिनमुखाद्भवसरस्वतिवाग्वादिन ! अत्र अवतर अवतर ! संवौषट । ओ ह्रीं श्रीजिनमुग्वाद्भवमरम्पतिवाग्वादिनि ! अत्र तिष्ठ निष्ट ठः ठः । श्रओं ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतिवाग्वादिनि अत्र मम सन्निहिता भव भव वषट् ।