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________________ श्री जन पूजा-पाठ संग्रह। त्वं कारुणिकः स्वामी त्वमेव शरणं जिनेश! तेनाहं । मोहरिपुदलितमानं फूत्करणं तव पूर: कुवं ।।१६।। ग्रामपतेरपि करुणा परेण केनाप्यपद्र ने पुमि । जगतां प्रभो ! न कितव, जिन ! मयि खलु कर्मभिः प्रहते १७॥ अपहर मम जन्म दयां, कृत्वत्येकवचमि वक्तव्ये । तेनातिदग्ध इति मे बभूव देव! प्रलापित्वं ।।१८।। तव जिनवर चरणाजयुगं करुणामृतीतलं यावत । मंमारतापतप्तः करोमि हदि तावदेव सुम्बी ॥१०॥ जगदेकशरण भगवन् ! नामि श्रीपद्मनंदितगुणोघ ! किं बहुना कुरु करुणामत्र जन शरणमापन्न ।।२०।। परिपुष्पांजलि क्षिपन। भापा प्रार्थना पं० पन्नालाल विशारद महगनी कृन । हे त्रिभुवन गुरु जिनवर, परमानन्दकहेतु हिनकारी। करहु दया किंकर पर प्राप्ती ज्यों हाय मोक्ष मुखकारी ॥१॥ हे अहन भवहारी, भवथिति में मया दुखी भारी। दया दीन पर कीजे, फिर नहि अब वाम होय दखकाग।।२।। जग-उद्धार प्रभो! मम करि उद्धार विपमभव जलसे । बारबार यह विनती करता हूं में पतित दुर्खा दिलसे ॥३॥
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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