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श्री जैन पूजा-पाठ मंग्रह।
धूप सुवास विथार. चन्दन अगर कपूर की। जनम रोग निग्वार. सम्यकरत्नत्रय भजों ॥७॥ आँ ह्रीं सम्यगन्नत्रयाय अकर्म विनाशनाय धूपं निः । फल शोभा अधिकार. लोग छुहारे जायफल । जनम रोग निवार, मम्यकरत्नत्रय भजों ॥८॥ श्रा ही सम्यारत्नत्रयाय मोक्षफलप्राप्रय फलं नि ।
आठ दम्ब निग्धार. उत्तमसों उत्तम लिये। जनम रोग निग्वार. सम्यकरत्नत्रय भजों ॥६॥ श्रा ही सम्यग्रत्नत्रयाय अनप्यपदप्रामय अन्य निक। सम्यकदर्शनज्ञान, व्रत शिवमग तीनों मयी। पार उतारण जान, 'द्यानत' पूजों व्रत सहित ॥ ओ ही मम्यग्रन्नत्रयाय पृणाव्य नि ।
दर्शन पूजा ।
दाहा।
सिद्ध अष्टगुनमय प्रगट, मुक्रजीव सोपान । जिहं बिन ज्ञानचरित्र अफल,सम्यकदर्शप्रमान?॥ ओं ही अष्टांगमम्यग्दर्शन । अत्र अवतर अवतर! मंवौषट् । ा ही अष्ट्रांगमम्यग्दर्शन ! अत्र तिष्ठ निष्ट ठः ठः। ओं ह्रीं अष्टांगमम्यग्दर्शन । अत्र मम मन्निहितं भव भव । वपट ।