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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह।
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उत्तमशौच लोभपरिहारी, संतोषी गुण रतन भंडारी । उत्तम संयम पाल जाता, नरभव सफल करे ले साता ॥४॥ उत्तम तप निरवांछित पाले, सो नर करमशत्रुको टाले । उत्तम त्याग करे जो कोई, भोगभृमि सुर शिवसुख होई ।।५।। उत्तम आकिंचन ब्रत धार, परमममाधिदशा विसतारें । उत्तम ब्रह्मचर्य मन लाब, नग्सुरसहित मुकतिफल पावै ॥६॥
दाहा। करे करमकी निरजरा, भवपींजरा विनाशि। अजर अमरपदको लहै, 'द्यानत' सुखकी राशि ॥ ओं ह्रीं उत्तमक्षमा. मादव. प्राजब. सत्य शौच. संयम. तप, त्याग, आकिचन्यब्रह्मचर्यदशलक्षणधर्माय पूर्णाघ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
रत्नत्रय पूजा।
दोहा चहुंगतिफणिविषहरनमणि, दुख पावक जलधार। शिवसुखसुधासरोवरी; सम्यक्त्रयी निहार ॥१॥ ओं ह्रीं सम्यग्रत्नत्रय ! अत्र बनगवतर! संवौषट्। ओं ही सम्यरत्नत्रय! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ओं ह्रीं सम्यग्रसत्रय ! अत्र मम सनिहिता भव भव वषट ।