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________________ १०० श्री जन पूजा-पाठ संग्रह । पांचों मेरु अमी जिनधाम, सत्र प्रतिमाको करों प्रनाम | महासुख होय, देखे नाथ परमसुख होय ॥ ७ ॥ श्रीं ह्रीं पंचमेरूसम्बंधिजिन चेन्यालयस्थ जिनबिम्बेभ्यो धूपं नि० सुरम सुवणे सुगंध सुहाय, फलमों पूजौं श्री जिनराय । महामुख होय, देखे नाथ परमसुख होय || पांचों मेरु अमी जिनधाम, सब प्रतिमाको करों प्रनाम | महासुख होय, देखे नाथ परममुख होय ||८|| ह्रीं पंचमेरूसम्बंधिजिनचैत्यालयस्यजिनबिम्बेभ्यो फलं निः आठ दरवमय अरघ बनाय, 'द्यानत' पूजों श्रीजिनराय । महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय || पांचों मेरु सी जिनधाम सब प्रतिमाको करों प्रनाम । महासुख होय, देखे नाथ परमसुख परमसुख होय ॥९॥ ह्रीं पंचमेरूसम्बंधिजिनचैत्यालयस्थ जिनबिम्बेभ्यो अर्थ नि० जयमाला | सोरठा I (i प्रथम सुदर्शन स्वामि, विजय अचल मंदर कहा । विद्युन्माली नाम, पंचमेरु जगमें प्रगट ॥ १०॥ सरी छन्द | प्रथम सुदर्शन मेरु विराजै, भद्रशाल वन भूपर छाजै । चैत्यालय चारों सुखकारी, मनवचतन वंदना हमारी || २ || ऊपर पांच शतक पर सोहै, नंदनवन देखत मन मोहे | चैत्यालय चारों सुखकारी, मनवचतन वंदना हमारी ॥ ३ ॥
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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