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चारो भवतु वा मा वा तथापि प्रथमचरमतीर्थेषु पक्षान्तादिषु प्रतिक्रमणं कर्त्तव्यमेवेति । केन पुनर्विधिनेति चेत्! उच्यते, | "इह किल साहुणो कयसयलवेयालियकरणिज्जा सूरत्थमणवेलाइ सामाइयाइसुत्तं पकड्डित्ता दिवसाइयारचिंतणत्थं काउस्सगं करन्ति, तत्थ य गोसमुहणंतगाइयं अहिगयचेछाकाउस्सग्गपज्जवसाणं दिवसाइयारं चिन्तितं(चिन्तन्ति), तओ नमोकारेण पारेत्ता चउवीसत्थयं पढन्ति, तओ सण्डासगे पडिलेहिता उकडुयनिविहा ससीसोवरियं कायं पमज्जन्ति, तओ परेण विणएण तिगरणविसुद्धं किइकम्मं करन्ति, एवं वंदित्ता उत्थाय उभयकरगहियरओहरणा अद्धावणयकाया पुवपरिचिन्तिए दोसे जहारायणियाए सञ्जयभासाए जहा सुगुरू सुणन्ति तहा पवड्डमाणसंवेगा मायामयविष्पमुका अप्पणो विसुद्धिनिमित्तमालोएन्ति, जइ नत्थि अइयारो ताहे सीसेण संदिसहत्ति भणिएहिं पडिक्कमहत्ति भणियवं, अह अइयारो तो पायच्छित्तं परिमुड्डाई दिन्ति, तओ गुरुदिन्नपडिवन्नपायच्छित्ता विहिणा निसिइत्ता समभावठिया सम्ममुवउत्ता अणवत्थपसङ्गभीया पए पए संवेगमावजमाणा दंसमसगाइ देहे अणगणेमाणा पयंपएण सामाइयमाइयं पडिक्कमणसुत्तं कडन्ति जाव तस्स धम्मस्सत्ति पदं, तओ उद्धहिया अनुडि ओमि आराहणाए इच्चाइयं जाव वन्दामि जिणे चउवीसन्ति भणित्ता गुरू णिविसन्ति, तओ साहू वन्दित्ता भणन्ति इछामि खमासमणो उवछिओमि अभिन्तरपरिकयं खामेउं, गुरू भणइ,अहमवि खामेमि तुन्भेत्ति
१ थोभवंदणं दाउं इच्छाकारेण संदिसह भयवं पक्खियमुहत्तियं पडिलेहेमोत्ति भणित्ता मुहपोत्तियं पडिलेहिय कयकिइकम्मा भणंति 'इच्छामि समासमणो उवट्टि ओमि अभितरपक्खियं खामेडं, गुरूभणइ, अहमविखामेमि तुब्भेत्ति, ताहे साहू भणंति पण्णरसण्हं | दिवसाणं पण्णरणहं राईणं जं किंचि अपत्तियं परपत्तियं इत्यादि, तओ पंचपभिअओ भवंति जइ तया उ तिण्णि जणे खाति, जइ दो तिषिण
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