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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 96 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
होगा तो निःशंकित हो ही नहीं सकतां निःशंक यानि निस्पृह, निष्परिहग्रहीं तुम्हारी हालत ऐसी है कि यहाँ गये, वहाँ गये सभी जगह भटक आयें आचार्य समन्तभद्र स्वामी कह रहे हैं- भो जहाज के पंछी! कहीं भी उड़ लो, पर बैठना तो पड़ेगा धर्म के पोत परं बिना धर्म-पोत पर बैठे तुम पार हो नहीं सकतें इसीलिए सम्यकदृष्टि जीव निःशंकित होकर निःसंगता की ओर जाता है और कहता है कि जो सर्वज्ञदेव ने कहा है वह यथार्थ ही है, अन्यथा नहीं हैं जैसा कि तलवार पर चढ़ा पानी नहीं उतरता, चाहे तलवार टूट जाय, ऐसे ही सम्यकदृष्टिजीव प्राण छोड़ सकता है, परन्तु मिथ्यात्व को प्रणाम नहीं कर सकता हैं
मनीषियो!दृष्टि तुम्हारी है, कहीं वीतरागमार्ग में अश्रद्धान मत कर लेनां क्योंकि शंका में दोलन-गति चलती है, कि यह सत्य है या कि वह सत्य हैं अरे! देखो जिसे तुम अंजनचोर कहते हो, वह निरंजन बन गयां जिसे आप सप्तव्यसनी कहते हो, उसकी ऐसी निःशंकित दृष्टि थी कि निग्रंथ योगी बन गयें आचार्यभगवन् कह रहे हैं-विश्व में जितने पदार्थ हैं, सब अनेकान्तदृष्टि से भरे हैं भूतनाथ के स्वामी को छोड़कर तुम भूतों के पीछे जा रहे हों इतने पवित्र शासन को छोड़कर तुम कहाँ दौड़ते हो? तत्त्वों को जाननेवाले! भीख मत माँगों माँगने से मरना भला, यह सदगुरु की सीख हैं पर सर्वज्ञदेव, वीतरागी-निग्रंथ-गुरु सत्य हैं कि असत्य हैं? ऐसी शंका कभी भी नहीं करना चाहियें तत्त्वों का जो कथन सर्वज्ञदेव ने किया है,वह ही यथार्थ है, वह ही सत्य हैं
सम्मेद शिखरजी
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