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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 88 of 583 ISBN # 81-7628-131-
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"प्रयोजनभूत सात तत्त्व" जीवाजीवादीनां तत्त्वार्थानां सदैव कर्त्तव्यम् श्रद्धानं विपरीताभिनिवेशविविक्तमात्मरूपं तत् 22
अन्वयार्थ :जीवाजीवादीनां = जीव, अजीव आदिकं तत्त्वार्थानां = तत्त्वों का, तत्त्वरूप पदार्थों का विपरीताभिनिवेशविविक्तं = मिथ्या-अभिप्राय एवं मिथ्याज्ञान से रहित, जैसे का तैसां सदैव श्रद्धानं = सदा ही, निरन्तर ही श्रद्धानं कर्त्तव्यं =करना चाहिएं तत् आत्मरूपं = वही श्रद्धान आत्मा का स्वरूप हैं
अंतिम तीर्थेश महावीरस्वामी की दिव्यदेशना हम सभी सुन रहे हैं आचार्य भगवन् अमृतचन्द्रस्वामी ने सहज सूत्र प्रदान किया है कि, भो ज्ञानी! संसार में आत्मा के उत्थान का उत्तम मार्ग सम्यकदर्शन हैं जब श्रद्धा के अभाव में संसार में भी सुख नहीं है, तो फिर परमार्थ के सुख को तू कैसे प्राप्त कर सकता है ? यदि तू भोजन करने भी जाता है और तुझे पत्नी पर अविश्वास हो जाए तो तू भोजन भी नहीं कर सकतां जहाँ भी तू जायेगा और अविश्वास है, तो तू अपने जीवन से स्वयं ही परेशान हो जायेगां करूँ तो क्या करूँ ? अहो! जीवन में यदि कोई महानता का सूत्र है तो वह विश्वास हैं
भो ज्ञानी! पर्याय के क्षणिक सुख के पीछे त्रैकालिक आत्म-सुख को मत भूल जाना जिसे परमेश्वर पर विश्वास है, अविश्वास उसका बाल भी बांका नहीं कर सकतां भगवान गोमटेश बाहुबली की प्रतिमा पर अपूर्व श्रद्धा का ही उदाहरण हैं मैसूरनरेश जैन नहीं था, परंतु जैनत्व के प्रति अगाध श्रद्धा थीं वैदिक-परंपरा के अनुसार कर्नाटक की परम्परा में भगवान की प्रतिमा का जो अभिषेक होता है उसको लोग पी लेते हैं नरेश को भी इतना अगाध विश्वास था कि वह गोमटेश बाहुबली भगवान के चरणों में हर सप्ताह आता, जब भी मौका मिलता प्रभु के चरणों में शीश झुकाता,पुजारी से कहता- मेरी अंजली में आप जल दे दो और श्रद्धा पूर्वक जल को चरणामृत मान कर पी लेतां भो ज्ञानी! सुख सर्वत्र है, पर ईर्ष्या में न कहीं सुख है, न कहीं शांति हैं यदि आप स्वभाव की ओर दृष्टि डालोगे तो आपको सर्वत्र सुख नजर आएगा, दुःख सर्वत्र नहीं हैं आप अपने घर गये, संबंधियों से झगड़ा हो गया, फिर किसी तीर्थ में चले गए तो वहाँ शांति महसूस होगी अतः, सुख सर्वत्र हैं दुःख वहीं है, जहाँ राग-द्वेष हैं तुम्हारा पड़ोसी पैसा कमाता है तो आपको राग-द्वेष होता हैं बाहर कितने करोड़पति और अरबपति बैठे हैं, वहाँ आपका ध्यान नहीं जाता हैं इसका तात्पर्य है कि जब
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