________________
अन्वयार्थ :
एवं
=
इस प्रकारं सम्यग्दर्शनबोध चारित्रत्रयात्मकः
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र इन तीन भेद स्वरूपं मोक्षमार्गः = मोक्षमार्ग नित्यं = सदां तस्य अपि = उस (उपदेश ग्रहण करनेवाले) पात्र को भीं यथाशक्ति = अपनी शक्ति के अनुसारं निषेव्यः = सेवन करने योग्यं भवति
होता हैं
पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 84 of 583 ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
"मोक्ष का मार्ग: रत्नत्रय "
एवं सम्यग्दर्शनबोध चारित्रत्रयात्मको नित्यं
तस्यापि मोक्षमार्गो भवति निषेव्यो यथाशक्ति: 20
=
=
तत्रादौ सम्यक्त्वं समुपाश्रयणीयमखिलयत्नेन तस्मिन सत्येव यतो भवति ज्ञानं चारित्रं च 21
=
संपूर्ण प्रयत्नों से सम्यक्त्वं
अन्वयार्थ : तत्र = उन तीनों में आदौ पहलें अखिल यत्नेन सम्यग्दर्शन कों समुपाश्रयणीयं = भले प्रकार प्राप्त करना चाहिएं यतः = क्योंकिं तस्मिन् सति एव = सम्यग्दर्शन के होने पर हीं ज्ञानं सम्यग्ज्ञानं च = औरं चारित्र सम्यग्चारित्रं भवति =
होता हैं
=
=
=
=
मनीषियो! इस जीव ने बाह्य तत्त्व को अनन्त बार समझा हैं जिस दिन अन्तस्थ-तत्त्व अर्थात् अन्तरंग के तेज को तुमने समझ लिया, उस दिन संसार के सम्पूर्ण बाह्य तत्त्व तुझे व्यर्थ नजर आयेंगें वह अन्तरंग दिव्य-ज्योति, वह दिव्यप्रकाश इस आत्मा को अनन्तता की ओर ले जाने वाला है, जिसे भगवान कुंदकुंद स्वामी ने धर्म का 'मूल' कहा है और पंडित दौलतरामजी ने जिसे 'प्रथम - सोपान' कहा हैं
मनीषियो! प्रथम-सोपान मत खो बैठना; यह मोक्षमहल की पहली सीढ़ी हैं अतः अपने दर्शन - गुण की रक्षा सबसे पहले कर लेनां क्योंकि श्रद्धा है, विश्वास है, तो मोक्ष तेरे पास हैं श्रद्धा, विश्वास नहीं तो ज्ञान 'ज्ञान' नहीं, चारित्र 'चारित्र' नहीं अरे! अंक नहीं है, तो शून्य 'शून्य' हैं देखो शून्य की महिमा, एक को दस बना देती है और शून्य रखते जाओ तो कीमत बढ़ती जाती है, पर यदि अंक सामने हैं हजारों शून्य लगे रहने
Visit us at http://www.vishuddhasagar.com
Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com
For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com