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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 82 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
भो चेतन! हिंसा चार प्रकार की होती है- आरम्भी, उद्योगी, विरोधी और संकल्पीं यदि आप श्रेष्ठ हैं, तो चारों प्रकार की हिंसा का त्याग कर दो नहीं छूट रही गृहस्थी, तो संकल्पी हिंसा तो मत करों जानकर किसी जीव का वध मत करों ऐसा असत्य तो मत बोलना जिससे किसी जीव के प्राण ही चले जायें ऐसा सत्य भी मत बोलना जिससे किसी के प्राण चले जायें वह सत्य, सत्य नहीं जिससे धर्म और धर्मात्मा की हँसी होती हों तुम्हारा वह सत्य भी असत्य है जिससे धर्म व धर्मात्मा के ऊपर उँगली उठती हैं अहो! तेरे शब्द से संस्कृति ही विपत्ति में पड़ जाये तो कहाँ की सत्यवृत्ति ? जिसकी वाणी से पूरे धर्म पर आँच आ रही हो, जिनशासन पर एक विपत्ति खड़ी हो जाये, उसको सत्य मत मानना ऐसा आचार्य समंतभद्र स्वामी ने कहा हैं मूलाचार में आचार्य वट्टकेर स्वामी ने भी स्पष्ट लिखा है - जिनवाणी, जिनवाणी हैं अपने मन के अर्थ निकालकर जिनवाणी की दुहाई मत दों मन का अर्थ निकाल कर, कषाय को प्रकट करके, जिनवाणी की दुहाई देकर हम धर्म का बिखराव न करें यह जिनशासन है, नमोस्तु शासन हैं इसलिये चर्चा करो, व्याख्यान नहीं, मिथ्या - उपदेश नहीं भो ज्ञानी! सत्यव्रत के भी अतिचार हैं, वे अतिचार श्रावक को ही नहीं लगते हैं, साधु को भी लगते हैं जिनवाणी को जिनवाणी ही रहने देना, महाव्रतों का कथन करें, जब कोई पाल न सके तब अणुव्रतों की चर्चा करें अधिकांश लोगों की भाषा रहती है कि, मैया! थोड़ा सँभल-संभल कर चलो, क्रम-क्रम से बैठो, पहले तुम यह बनो, वह बनों भो ज्ञानी ! फिर उतने में ही संतुष्ट हो गये तो क्या बने ? अब आपके सामने आगम है, लेकिन जैनशासन को लजाना मत, क्योंकि हम प्रभावना नहीं कर पाये तो हमें कोई चिंता नहीं है, परन्तु जिनदेव की अप्रभावना इस तन से नहीं करना
भो चेतन ! अन्तर व बाह्य दोनों वृत्ति ही मुनिव्रत हैं जब तक बाहर नहीं आया तब तक अन्तर में कैसा है, क्या मालूम? बाहर में निर्ग्रथ - दशा होगी तो अन्तस में निर्विकल्प - दशा होगी; परन्तु कोई ऐसा न मान बैठे कि पहले हम निर्विकल्प - दशा को प्राप्त कर लें फिर हम मुनि बन जायेंगें भो ज्ञानी! वही दशा होगी कि पहले केवलज्ञान हो जाये, फिर दीक्षा ले लेंगें ऐसा नहीं है! अन्तर व बाह्य दोनों परिग्रह का त्याग होगा क्या मूँगफली के ऊपर के लाल छिलके को पहले हटाया जाता है ? भो चेतन! ऊपर का छिलका बाह्य परिग्रह है और अन्दर की लालिमा कषायवृत्तिं इसलिये क्रम से टूटेगां जैसे-जैसे तुम आगे बढ़ते जाओगे, वैसे-वैसे कषाय मंद होती चली जायेगी यही आगम-परम्परा है, आगम-व्यवस्था है जिसका आत्मबल प्रबल नहीं है, वह गंभीर - संयम के बारे में कह नहीं सकता और जिसके पास जरा भी कमी होगी, वह निर्दोष- संयम की चर्चा कर नहीं सकतां स्वयं दृढ़ता नहीं है, वह दूसरों से दृढ़ता की बात क्या करेगा? इसलिये भूल नहीं करना कभीं ठी भैया! तुम जाओ संयम की ओर बहुत अच्छा हैं सहयोगी बनना और कोई दूसरा हो तो उसे समझा देनां ऐसा मत करना कि देखो-देखो, वह गिर रहा है, गिर जाने दो, फिर हम बतायेंगें फिर लोगों से कहेंगे कि देखो, गिर गयां तुम देखते रहे, तुम कैसे धर्मात्मा थे? तुम्हारा कर्त्तव्य क्या बनता है? कोई गिर रहा
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