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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी : पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 81 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 में ऐसी घोर तपस्या ? बोले- भाइयो! उस दिन पूछने नहीं आये जब मैं घोर सात व्यसनों को सह रहा था ! इसलिये संत-हृदय असंत में भी संत को खोज लेता हैं आवश्यकता दृष्टि की हैं आचार्य अमृतचंद्र स्वामी कह रहे हैं कि एकान्त में निवास करने वाले ऐसे योगियों की आलौकिक वृत्ति हैं सब कुछ सुने, सब कुछ कहे, फिर भी अपने को न भूलें रास्ते में अनेक उपसर्ग, परीषह, भक्त - अभक्त सभी प्रकार के जीव मिल रहे हैं, सबसे चर्चायें करो, पर अपने आत्मघट को मत भूल जानां यह है संत - दशा, यही मोक्षमार्ग है, यही समयसार है, यही तत्त्वसार है, यही पुरुषार्थ की सिद्धि हैं आचार्य महाराज अब वक्ता से चर्चा कर रहे हैं भो ज्ञानी ! यदि तुम्हारे सामने कोई साधक मुमुक्षु आता है अपनी भावना को लेकर, उसकी भावना मत गिरा देना, किसी के घाव पर नमक मत छिड़कनां जिसे बंध हो गया हो, वह कभी जिनेन्द्र के शासन की मार्ग प्रभावना नहीं कर सकता; क्योंकि अशुभ आयु के बंधक की दृष्टि- वीतराग मार्ग के प्रति निर्मल नहीं होतीं अतः मिथ्या-उपदेश मत कर देनां भैया का विचार बना कि मैं तो आज दो प्रतिमा ले रहा हूँ दूसरे भाई खड़े हो गये, बोले- तुम्हें पार्टियों में जाना पड़ता है, व्रती बनकर क्या करोगे? भो ज्ञानी! तुम गये थे पार्टी में और पता चला दूसरे दिन तुम्हारे द्वारे पर शोक पार्टी बैठ गई किसी को रोकना मत, कोई संयम की ओर बढ़ रहा हो तो इतना जरूर कह देना कि, भैया! ले लो, ले लो; परन्तु पीछे मत लौटना संयम से आप किसी को रोकना मत, आप तो और साधन बना देना कि बहुत अच्छां भो ज्ञानी ! अमृतचंद्र स्वामी कह रहे हैं कि सबसे पहले आपको महाव्रतों का वर्णन ही करना चाहियें 'अणुव्रत 'श्रावकों के व्रतों का नाम हैं मुनियों के व्रतों का नाम है 'महाव्रत' समंतभद्र स्वामी कह रहे हैं कि जो व्रत जीव को महान बना दें, उन व्रतों का नाम है महाव्रतं जिन्हें महापुरुष धारण कर सकें, उसे महाव्रत कहते हैं जिस कुल में महाव्रती बनते हों, वह ही कुल उच्च - गौत्र हैं जब तुम आये हो, कुछ तो ले जाओं उसको श्रावक के व्रतों का कथन करें, देशव्रतों का कथन करें, अणुव्रतों का कथन करें, क्योंकि आपकी सामर्थ्य महाव्रत धारण करने की नहीं हैं यह भी परम्परा से मोक्षमार्ग हैं यह भी संयम - असंयम - देशव्रत हैं लेकिन मोक्ष तभी होगा, जब तुम सकल-संयमी बनोगें मनीषियो ! उचित तो यही है कि आप सब महाव्रती बनो, नहीं बन पा रहे हो तो कम से कम अणुव्रती तो बन ही जानां यदि अणुव्रती भी नहीं बन पाओ तो हमारा आगम बड़ा ही विस्तृत है,बड़ा उदार है, कम से कम पाक्षिक- श्रावक तो बन ही जाना, क्योंकि जिनदेव, जिनवाणी, निग्रंथ गुरु के अलावा अब तुम्हारे पास कोई सहारा इस पंचमकाल में नहीं डूबते को तिनके का सहारा हैं अरहंत-देव नहीं हैं आज, गणधरपरमेष्ठी नहीं हैं आज, साक्षात केवली नहीं हैं आजं तुम्हारे पास जो हैं उनको ही तुम छोड़ बैठे तो भो ज्ञानी अब सहारा कोई नहीं है तुम्हारे पास इसलिये निर्मल बनो, निर्मल बनाओ, परन्तु समलता न उड़ेलों Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact: akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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