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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 60 of 583 ISBN # 81-7628-131-
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"बंध, निबंध दशा" जीवकृतं परिणामं निमित्तमात्रं प्रपद्य पुनरन्थे स्वयमेव परिणमन्तेऽत्र पुद्गलाः कर्मभावेनं12
अन्वयार्थ :जीवकृतं =जीव के किये हुयें परिणाम = (रागादि) परिणामों का निमित्तमात्रं प्रपद्य = निमित्तमात्र पाकरं पुनः फिरं अन्ये पुद्गला : जीव से भिन्न अन्य पुद्गल स्कन्ध हैं वे अत्र स्वयमेव = आत्मा में अपने आप हीं कर्मभावेन = (ज्ञानावरणादि) कर्मरूप में परिणमन्ते = परिणमन कर जाते हैं
मनीषियो! ज्ञानचेतना यदि निर्मल हो तो परमात्मतत्त्व दूर नहीं है और जहाँ ज्ञान का विपरीत परिणमन हुआ, समझ लो कि मेरा मोक्षमार्ग अवरुद्ध हो गयां ऐसा चिंतवन जीव को विशालता देता है और यही चिंतवन जीव को संकुचन भी देता हैं आत्मा वहीं है, अन्यत्र नहीं गई, पर संकुचित चिंतक तो नीचे चला और विशाल चिंतक सर्वज्ञ हो गया क्योंकि चिंतन की धारा विशाल थी, समदृष्टित्व-भाव था, प्राणीमात्र के प्रति एकत्व-भावना थी तथा स्व के प्रति अभिन्नत्व- भावना थीं भिन्नत्व में अभिन्नत्व देखना और अभिन्नत्व में भिन्नत्व देखना,यही तत्त्व की सबसे बड़ी भूल हैं ज्ञान-दर्शन तेरा अभिन्न-स्वभाव है, उस पर तेरी अभिन्नदृष्टि नहीं है और पौद्गलिक पदार्थ तेरे से अत्यंत भिन्न हैं, उन पर तू अभिन्नदृष्टि किये है, यह सबसे बड़ी तत्त्व की भूल हैं यह ज्ञान के विपरीत परिणमन का प्रभाव ही है कि यह जीव संसार में गोते खा रहा हैं पदार्थ अपने आप में मूक है, द्रव्य अपने आप में शांत है, परन्तु परिणति में उथल-पुथल हैं मनीषियो ! ध्यान रखना, सर्वज्ञ बनने वाली आत्मा संपूर्ण संबंधों से परे होती हैं बात समझना कि जब तक आपका एक से संबंध होगा, तब तक अनेक से संबंध नहीं होगा, जिसका एक से संबंध छूट जाएगा, उसका अनेक से संबंध बन जाएगा, यही संत-दृष्टि हैं
भो ज्ञानी! सर्वज्ञ तभी बने, जब वे आत्मज्ञ थें जब तक सबको जानने की भावना बनी रहती, तब तक 'सबको जाननेवाला' नहीं बन सकते थें यदि सबके ज्ञाता बनना चाहते हो तो सब का ज्ञान छोड़ दों जिस दिन सबका ज्ञान छूट जायेगा, उस दिन आप स्व के ज्ञाता बन जाओगे, क्योंकि सबको जानने की भावना रागी में होती हैं जब तक राग रहेगा, तब तक सबको जानने की दृष्टि भी रहेगी और जिस दिन राग बीत जाएगा, तुम सबको जानने की दृष्टि भी नहीं रखोगे, आपके ज्ञान में सब आ जाएगां इसलिये ज्ञानी-जीव
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