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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 552 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 भव्य बंधुओ! अंतिम तीर्थेश भगवान् महावीर स्वामी की पावन पीयूष देशना जन-जन की कल्याणी हैं आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी ने अलौकिक सूत्र दिया है कि सम्यकदर्शन सम्यज्ञान और सम्यकचारित्र से निबंधता की प्राप्ति होती हैं संसार में आत्मा को परमात्मा बनाने वाले जीव बिरले हैं, लेकिन आत्मा को संसार में रुलाने वाले हेतु अनंत हैं आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी बहुत सहज कथन कर रहे हैं कि निज पर दृष्टिपात करो, निज पर करुणादृष्टि डालों आज तक आपने अपने आप को बिगाड़ा हैं एक कुंभकार भी घट सम्हल-सम्हल कर बनाता हैं मनीषियो! संसार की रचना भी जड़ से है, भोगों की सामग्री भी जड़ है और शरीर जड़ का पुतला ही हैं इन तीन से बचने का उपाय तीन ही है-सम्यक्दर्शन, ज्ञान, चारित्रं संसार के अखाड़े में आप कूदे हो और राग-द्वेष की लिप्तता आपके शरीर में हैं यदि आप उस पर चलोगे तो कर्म की मिट्टी तो चिपकेगी ही आवश्यकता है कि धूल में कूदने के पहले शरीर के तेल को पोंछ लों 'समयसार' जी में बड़ा सुन्दर कथन है कि कितना ही खेल खेलें, पर जिसके शरीर में तेल नहीं होता है, वह कभी मिट्टी से लिप्त नहीं होता नियमसार' जी में भी कथन है कि जहाँ इच्छा है, वहाँ बंध है और जहाँ आकांक्षा है, वहाँ बंध हैं केवलीभगवान् देशना भी दे रहे हैं, विहार भी कर रहे हैं, फिर भी बंध नहीं है, क्योंकि आकांक्षा उनकी समाप्त हो चुकी हैंअतः यदि निबंध होना चाहते हो तो आज से आकांक्षा छोड़ दों __भो ज्ञानी! ऐसा भी होता है कि जिनवाणी सुनने वाला भी मोक्षमार्गी नहीं हो सकता और जिनवाणी न सुनने वाला भी मोक्षमार्गी हो सकता हैं एक जीव ज्ञान मात्र के लिए अथवा प्रज्ञा के लिए सुन रहा हैं प्रज्ञा सम्यक्ज्ञान नहीं है, क्षयोपशम सम्यज्ञान नहीं है, वस्तु के यथार्थ श्रद्धान के साथ जो ज्ञान है, उसका नाम सम्यज्ञान है, समीचीन ज्ञान हैं ध्यान रखना, संस्कार कभी खाली नहीं जातें आपका शरीर भले ही साधना नहीं कर रहा हो, पर आप साधना और साधकों को देखते रहो तो विश्वास करना, अगला भव तुम्हारा सच्चे–साधु के रूप में प्रशस्त होगां अहो! पति ने सामायिक की प्रतिज्ञा की कि जब तक दीप जलेगा तब तक सामायिक चलेगी पर पत्नी ने सोचा कि दीप बुझ गया तो पतिदेव को अंधेरे में बैठना पड़ेगां इधर उसकी भावना भी प्रशस्त थी, उधर व्यथा सताती हैं यहाँ दीपक बुझ नहीं रहा है, परंतु आयकर्म का दीप बझ गयां भले ही वह तृषा की पीड़ा से जल में मेढ़क हो गया, परंतु सिद्धांत कह रहा है कि संस्कार छूटते नहीं हैं अशुभ संस्कार भी नहीं छूटते, शुभ संस्कार भी नहीं छूटते, निश्चित ही काम में आते हैं भो ज्ञानी! राजा श्रेणिक के द्वारा कराई गई भेरी की आवाज सुनकर वह मेंढक सोचने लगा कि मैं भी प्रभु की आराधना करूँ आचार्य कुमुदचन्द्र स्वामी लिखते हैं-हे नाथ! जैसे मेघ की गर्जना सुनकर मयूर नाच उठते हैं, वैसे ही आपकी भक्ति की आवाज को सुनकर मेरा मनमयूर नाच उठा हैं प्रभु! विषधर भले ही चंदन के वृक्ष से लिपटे हुए हों अथवा जटिल बंधन से बंधे हों, लेकिन मयूर की आवाज सुनकर वे सांप बंधन तोड़कर भाग जाते हैं हे देवाधिदेव! हे अर्हन्त देव! आपकी भक्ति की आवाज को सुनकर कर्मरूपी भुजंग इस Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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