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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 549 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
वादिराज स्वामी सोचने लगे-यह क्या कह रहे हैं ? वह पुनः बोला-प्रभु! आपको संसार के भोगों के प्रति निर्ममत्व- भाव है, लेकिन वीतराग शासन की प्रभावना में तीव्र ममत्व-भाव हैं
भो ज्ञानी! जिसको वीतराग जिनेन्द्र के शासन में ममत्व नहीं, उसे सम्यकदृष्टि भूल से भी मत कह देनां शरीर की श्वासें निकल जाएँ लेकिन, हे प्रभु! आपके प्रति मेरी श्रद्धा की श्वासे बाहर न निकलें, इसका नाम सम्यकदृष्टि हैं भक्त कहने लगा-भगवन् राज्य सभा में मैंने कह दिया है कि मेरे मुनिराज तो कंचन सी/स्वर्णमयी काया से चमकते हैं प्रभु! इस लोक में मेरा कोई है, तो एक आप ही हैं हे नाथ! जब आप गर्भ में आये थे तो सारी वसुधा स्वर्णमयी हो गई थीं आपका जन्म हुआ तो नरक के नारकी को भी शांति की सांस मिलीं जब यह भूमि स्वर्णमयी हो सकती है तो, हे प्रभु ! यह देह स्वर्णमयी कैसे नहीं हो सकती है ? अकाट्य विश्वास थां मुनिराज बोले-आप विश्वास रखो, सम्पूर्ण रोग यहाँ से पलायन हो जाएँगें अहो! देखते ही देखते कुष्ठ ऐसे चला गया जैसे गर्म तवे पर पानी की बूंदं प्रातःकाल दर्शन-वंदना के लिए सम्राट स्वयं पहुँच गये और जैसे ही रत्नत्रय से मंडित वीतरागी संत का शरीर राजा ने देखा तो राजा की आँखें श्रद्धा से भर गई राजा कहने लगा-जिनको संसार में सत्तर कोड़ा-कोड़ी सागर भटकने की फुरसत हो, वह धर्म और धर्मात्मा की खुलकर अवहेलना करें, अन्यथा सिर झुकाकर नमोस्तु कर लें
भो ज्ञानी! जो निकांक्षित भाव से भगवान जिनेन्द्र का स्तवन करता है, उसके सम्पूर्ण कर्म नष्ट हो जाते हैं आप विश्वास रखना, श्रद्धा को खोखली मत कर देना, दुनियाँ में नहीं भटकनां परमेष्ठी की शरण में चले जाओं यह तो छोटा सा रोग था, जन्म, जरा, मृत्यु जैसे त्रिरोग भी जिनेन्द्र देव की आराधना से नष्ट हो जाते हैं उसके लिये आपको तीन गोलियों की चर्चा आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी कर रहे हैं कि भगवंत आत्माओ! अपनी श्रद्धा की पहली गोली को पूर्ण सुरक्षित रखना, यह आस्था की पहली औषधि हैं दूसरी सम्यक्ज्ञान और तीसरी सम्यकचारित्र की गोली से तीनों रोग देखते ही देखते पलायन कर जाएँगें
भो ज्ञानी! आचार्य वादिराज स्वामी ने 'एकीभाव स्तोत्र' में स्पष्ट लिखा है कि घनघोर तपस्या कर लो, घनघोर साधना कर लो, लेकिन ध्यान रखो, ताला तभी खुलेगा जब चाबी हाथ में आयेगी मोक्ष भवन में मोह का ताला पड़ा हुआ हैं प्रभु-भक्तिरूपी सुंदर कुंजी को जब घुमाया जाता है, तो मोक्ष महल का ताला खुल जाता है और यह आत्मा सिद्धालय में जाकर विराजमान हो जाती हैं इसलिए भक्ति की कुंजी को खो मत देना, अन्यथा द्वार पर भी पहुँच जाओगे तो भी प्रवेश नहीं मिलेगां अनेक जीव सिद्धों के द्वार के पास पहुँच गये, लेकिन सिद्ध नहीं बन सके, क्योंकि उनके पास चाबी नहीं थीं अहो! निगोदिया बनकर कितनी बार सिद्धशिला पर पहुंच चुके हो? इसीलिए, भक्ति तुम्हारे पास नहीं होगी, तो शिवकन्या तुम्हें वरण करने वाली नहीं हैं यहाँ आचार्य भगवान् कह रहे हैं-अहो श्रावको! महाव्रती नहीं तो अणुव्रती ही बन जाना, असंयमी पर्याय श्रेष्ठ नहीं अतः घर में रह कर श्रावक के बारह व्रतों का पालन अवश्य करों इतने भाव नहीं आये, तो
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