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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 542 of 583 ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
परीषह सहना मूलगुण हैं मुनि परीषह को सहन नहीं कर पा रहे हैं तो उनके संयम में कोई दोष नहीं हैं माना कि ठंड सता रही थी, कमरे में जाकर बैठ गये, परीषह तो गयां ध्यान रखना कि जितनी तुम्हारी सामर्थ्य हो, उतना करो; लेकिन मार्ग यही हैं परीषह तो बाईस ही हैं इतनी साधना तो सहज ही कम दिख रही है, परंतु उपदेश राज-मार्ग का ही होना चाहिए, अपवाद का व्याख्यान करने की कोई आवश्यकता नहीं हैं अपवाद को तो लोग खोज लेते हैं पानी इतना पतला होता है कि कहीं न कहीं से रिस ही जाता हैं शिथिलाचार तो पतला पानी है, उसका कथन करने की कोई आवश्यकता नहीं इसलिए आचार्य भगवान कह रहे हैं कि संसार के क्लेश से भयभीत होकर, संक्लेशता से रहित होकर वे निर्ग्रथ योगी बाईस परीषहों को सहन करते हैं
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आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज
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