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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 54 of 583 ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
विरला जाणहि तत्तु बुह, विरला णिसुणहिं तत्तुं विरला झायहिं तत्तु जिय, विरला धारहिं तत्तु 66
अर्थात् इस लोक में तत्वों को जानने वाले जीव बिरले हैं, सुनने वाले कम हैं सुनने से ज्यादा जानने वाले कम हैं जानने वाले हजारों हैं, तो भो ज्ञानी! मानने वाले बहुत कम हैं और मानने वालों में धारणा बनाने वाले जीव अंगुलियों पर गिनने लायक हैं भो ज्ञानी ! इन शब्द - वर्गणाओं को नष्ट मत करो, इनको संजोकर रखो, यह पुण्य के योग से मिली हैं यदि यह नष्ट हो गईं तो एक - इंद्रिय बनना पड़ेगा, जो कह नहीं पा रहा है, वेदना हो रही है, कुल्हाड़ी से काटा जा रहा है, करोंते से छीला जा रहा हैं इसलिए एक काम कर लो, भोग-उपभोग का परिमाण कर लों जितनी लेते हो उतनी रख लो, बाकी को छोड़ दो, नहीं तो जितनी वनस्पतियाँ हैं उन सबके भक्षण का दोष तुम्हें लग रहा है, आस्रव हो रहा है, लाखों की संख्या में जीवों के खाने की भावना तो मत बनाओं
भो ज्ञानी आत्माओ ! धूप तो नहीं लग रही, वनस्पति को तो देखो कब से खड़ी हैं कभी - कभी धूप लगना भी चाहिये, क्योंकि ज्यादा छाया में बैठ - बैठकरे तुम धूप को भूल गये हों पुण्य की छाया में बैठे-बैठे बहुत दिन बीत गये और जरा-सी पाप की धूप आ गई तो उतने में ही तुम बिलखने लगें अरे ! जिसने धूप में बैठना सीख लिया हो, उसे छाया और धूप में कोई फर्क नहीं पड़ेगां हे योगी! यह तो जरा-सी धूप है, उस कामना और वासना की धूप की तपन को तो देखों यह धूप तो शरीर को ही तपा रही है, वासना के ताप ने तो आत्मा को ही जला डालां
अहो! अनादि काल से तूने अपने ज्ञान का विपरीत परिणमन किया हैं तू ही कर्ता है, तू ही भोक्ता हैं कर्मों के पिण्ड का कर्त्ता परमेश्वर नहीं हैं कर्म कर्त्ता नहीं है, तेरा रागादिक भाव ही तेरा कर्त्ता हैं रागादिक-भाव का तू कर्त्ता होने से तू जड़ कर्मों का भी कर्ता हैं
जीवपरिणामहेदुं कम्मत्तं पुग्गला परिणमंतिं
पुग्गलकम्मणिमित्तं तहेव जीवो वि परिणमदि 80 स.सा.
हे जीव! तेरे रागादिक भावों से कार्माण - वर्गणाएँ कर्मरूप हुई हैं उन कार्माण - वर्गणाओं के बंध होने के कारण तू रागादिक-भाव से परिणत हुआ हैं बिना जीव के संयोग के कर्म-वर्गणायें कर्मरूप नहीं बनती और बिना कर्मबंध के जीव रागादिक- भाव को प्राप्त नहीं होता यह आगम का कथन हैं यह भूल कर्मों की
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